अनेक प्रयोगों के आधार पर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में निम्न परिकल्पनाएँ प्रेक्षित हुई हैं –
- पर्णहरित एवं सहायक वर्णकों द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा का उपयोग जल प्रकाशिक अपघटन (Photolysis of water) में होता है, जिसमें O2, H+ तथा इलेक्ट्रॉनों (e–) का निष्कासन होता है।
- निष्कासित इलेक्ट्रॉन का प्रवाह प्रकाश तंत्रों (Photosystems) के विभिन्न ग्राहियों से होता है, जिसमें अन्तिम रूप से ATP एवं NADPH + H+ के रूप में ऊर्जा संग्रहित होती है।
- प्राप्त उच्च ऊर्जा के अणु (ATP एवं NADPH + H+) CO2 के अपचयन में सहायक होते हैं, जिस शर्करा (carbohydrates) का उत्पादन होता है। अतः प्रकाश संश्लेषण एक ऑक्सीकरण-अपचयन (redox) अभिक्रिया है, जिसमें जल का ऑक्सीकरण तथा कार्बनडाइऑक्साइड का अपचयन होता है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मुख्यतः दो चरणों में सम्पन्न होती है, ये चरण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं किन्तु परस्पर पूरक होते हैं।
ये चरण इस प्रकार हैं –
I. प्रकाशिक अभिक्रियाएँ (Light reactions) – प्रथम चरण में प्रकाशिक अभिक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में सम्पन्न होती हैं। इसमें स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) को निर्माण होता है। प्रकाशिक अभिक्रिया हरितलवक में ग्रेना (Granna) में सम्पन्न होती है।

II. अप्रकाशिक या ब्लैकमेन अभिक्रियाएँ (Dark or Blackman reactions) – इस चरण में होने वाली अभिक्रियाओं के लिए प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है। इस अभिक्रिया में स्वांगीकरण शक्ति का प्रयोग CO2 के शर्करा में अपचयन हेतु किया जाता है। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में सम्पन्न होती है। ताप गुणांक (temperature factor) एवं अन्य प्रयोगों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश से प्रभावित होती है, जिसे प्रकाशिक अभिक्रिया कहा जाता है जबकि दूसरी प्रक्रिया तापमान से प्रभावित होती है, जिसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) कहते हैं। प्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 1) तथा अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के लिए ताप गुणांक (Q = 2 या 3) होता है।