संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से रख-रखाव जिससे उस संसाधन की हानि न हो तथा व्यर्थता को रोका जा सके, यह प्रक्रिया संसाधन संरक्षण कहलाती है। जल संरक्षण में नागरिकों, समाज व सरकार की भागीदारी को होना अत्यन्त आवश्यक है। जल संरक्षण के लिए हम जलाशयों में औद्योगिक अपशिष्ट न डालें।
जल स्रोतों के पास कपड़े न धोएं व स्नान न करें। जल में उत्पन्न खरपतवार को हटाएँ। खड़ीन, कुण्डी, कुंई, नाड़ी, जोहड़, तालाब आदि हमारी जल संचयन व संग्रहण की परम्परागत विधियाँ हैं। हमें परम्परागत जल-संग्रह के इन साधनों की रक्षा करनी होगी, क्योंकि जल के तीव्र दोहन से विकट समस्या उत्पन्न हो गई है।