उषाकाल होने पर आकाश में लाल-लाल किरणों को बिखेरता हुआ सूर्य ऐसा लगता है कि लाल-भूरा मिट्टी का घडा काले-नीले आकाश रूपी तालाब से बाहर आ गया है। उसे लाल चनर पहन। उसे लाल चूनर पहनी हुई प्रकृति रूपी नारी अपने सिर पर उठा रही है, परन्तु सूर्य के पूर्ण उदित होते ही वह अब अदृश्य हो गई है। सन्ध्याकाल होने पर सूर्य श्वेत-पीत-लाल आभा अपनाकर अस्त होता है। ऐसा लगता है कि दिन-भर चलने से थका हुआ सूर्य विश्राम के लिए पश्चिमांचल में जा रहा है अथवा सूर्य अपनी सहचरी छाया के साथ सन्ध्या-नायिका से मिलने जा रहा है।