'उषा' शमशेर बहादुर सिंह द्वारा लिखित कविता है, जो कि प्रकृति के सुन्दर दृश्य का वर्णन करती है। इस कविता में कवि ने नए बिम्ब, नए प्रतीक, नए उपमानों का प्रयोग किया है। कविता 'उषा' में सूर्योदय से ठीक पहले के परिवर्तित होते दृश्य को नवीन उपमानों से सजाया है। सूर्य उदित होता है उससे पहले आकाश नीले रंग के शंख की तरह दिखाई पड़ता है तो कभी राख से लीपे चौके की तरह लगता है। जो प्रात:कालीन नमी के कारण अभी तक गीला है।
कभी कवि को सूर्य उदय से पहले आकाश काली सिल की भाँति लगता है तथा उदित सूर्य की लालिमा, काली स्लेट पर लाल चॉक से खींची रेखाएँ प्रतीत होती हैं। उस समय आकाश नीले जलाशय समान सुंदर मनोरम प्रतीत होता है, जिसमें सूर्य की किरणें गौर वर्ण की नायिका समान तैरती प्रतीत होती हैं। शनैः शनैः सूर्योदय हो जाता है और उषा का जादू तेज प्रकाश के साथ खत्म हो जाता है। कवि ने इसके माध्यम से गाँव के जीवंत परिवेश का वर्णन किया है। जहाँ काली सिल, राख से लीपा चौका, स्लेट पर लाल रेखाएँ हैं, जहाँ रंग हैं, गति है और भविष्य का उजाला है, साथ ही हर कालिमा को चीर कर आने वाली 'उषा' है, का विशेष वर्णन किया है।