इससे व्यंजना की गई है कि समय पर वर्षा न होने से तथा धनिकों के शोषण-उत्पीड़न से कृषक-श्रमिक हाड़ मात्र रह जाते हैं। उनकी बाँहें कमजोर तथा शरीर दुर्बल हो गए हैं। जिससे उनकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति चिन्तनीय बनी रहती है और वे बादल रूपी क्रान्ति की आशा में रहते हैं।