कवि का आशय है कि सन्ध्या के समय कजरारे बादलों के मध्य श्वेत बगुलों की पंक्ति इतनी मनोरम लगती है कि आँखें उनकी उड़ान के पीछे-पीछे भागती रहती हैं। मानो सन्ध्या की श्वेत काया कवि की आँखों को अपने साथ चुराये लिये जा रही है। कवि उस दृश्य से अपनी नजरें हटा नहीं पा रहे हैं।