पहली कन्या के बाद जब भक्तिन ने दो पुत्रियों को जन्म दिया, तो तब पुत्र-प्रेम से अंधी अपनी जिठानियों द्वारा वह उपेक्षा और घृणा का शिकार बनी। भक्तिन की सास तीन पुत्रों की माँ थी, उसने भी भक्तिन की उपेक्षा की। भक्तिन अपनी जिठानियों तथा सास की तरह पुत्र पैदा नहीं कर सकी।
विचारणीय बात यह है कि भक्तिन को घृणा और उपेक्षा परिवार की नारियों से ही मिली, अपने पति से नहीं। तीन कन्याएँ पैदा करने पर भी पति ने उसके प्रति प्रेम में कमी नहीं आने दी। इस घटना से यह धारणा स्पष्ट हो जाती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है और वही एक-दूसरे की उपेक्षा करती हैं, आपस में ईर्ष्या-द्वेष रखती हैं।