भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जबर्दस्ती की थी, उसे जबरन अपने साथ कोठरी में बन्द कर दिया था। तब गाँव की पंचायत में लड़की की अनिच्छा के बावजूद उसे उस तीतरबाज युवक के साथ बाँध दिया गया और पति-पत्नी की तरह रहने का निर्णय सुनाया गया। इस घटना को स्त्री का सम्मान व अधिकार कुचलने वाली मानकर कहा जा सकता है कि स्त्रियों के साथ ऐसे व्यवहार सदियों से होते आ रहे हैं।
नारी को अबला मानकर दबाया जाता है, उसकी इच्छा-अनिच्छा का ध्यान न रखकर किसी के भी साथ उसका विवाह कर दिया जाता है। इसी का दुष्परिणाम अपहरण और बलात्कार रूप में भी देखा जाता है। समय बदलता रहा, परन्तु स्त्री-जाति का ऐसा शोषण नहीं रुका, उनके अधिकारों का हनन होता रहा। आज भी गाँवों की पंचायतों में ऐसी गलत परम्पराएँ चल रही हैं। भक्तिन की बेटी के साथ घटित घटना इसी की प्रतीक है।