पति की असामयिक मृत्यु के बाद भक्तिन ने परिश्रम करके गृहस्थी चलायी और बेटियों का विवाह कराया। लेखिका की सेविका बनने पर वह प्रत्येक काम परिश्रम से करती थी और मालकिन को प्रसन्न रखना अपना कर्तव्य मानती थी। इसी कारण लेखिका के प्रत्येक काम में सहायता करती थी। अतः परिश्रम करना और कर्त्तव्य-पालन करना उसका स्वभाव बन गया था।