लेखिका जब भी कहीं दूर की यात्रा पर जाती, तो भक्तिन उनके साथ अवश्य जाती। बदरी-केदार की यात्रा में ऊँचे-नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते में वह हठ करके लेखिका के आगे चलती। इसी प्रकार गाँव की धूलभरी पगडण्डी पर वह लेखिका के साथ छाया की तरह चलती रहती थी। इस तरह भक्तिन लेखिका के भ्रमण-काल में। साथिन बनी रहती थी।