इस सम्बन्ध में जीजी के विचार थे कि जो चीज मनुष्य पाना चाहता है, उसे पहले खुद देना पड़ता है—त्याग करना पड़ता है। बिना त्याग के दान नहीं होता है। जो चीज बहुत कम है, उसका त्याग करने से ही लोक-कल्याण होता है। इससे स्वार्थ-भावना कम होती है और परोपकार भावना बढ़ती है।