लुट्टन अपने दोनों पुत्रों को कसरत करने की शिक्षा देता था। वह प्रतिदिन प्रात:काल स्वयं ढोल बजा बजाकर पुत्रों को उसकी आवाज पर पूरा ध्यान देने के लिए कहता था कि "मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है। ढोल की आवाज के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतर कर सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना।" आदि शिक्षा देता था।