दरबार से जवाब मिलने पर वह तो उसी दिन ढोलक कन्धे से लटकाकर अपने दोनों पुत्रों के साथ गाँव आ गया। वहीं पर रहकर वह गाँव के नौजवानों और चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। खाने-पीने का खर्च गाँव वालों की ओर से बँधा था। सुबह-शाम वह ढोलक बजा कर अपने शिष्यों और पुत्रों को दाँव-पेंच वगैरह सिखाने लगा था।