नौ वर्ष की अवस्था में माता-पिता की मृत्यु, तब विधवा सास द्वारा पालन-पोषण करने से लुट्टनसिंह का प्रारम्भिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। गाँव में महामारी फैलने पर, दंगल में पहलवानों का मुकाबला करने में, बाद में सास व पत्नी की मृत्यु होने और दो पुत्रों के शवों को स्वयं दफनाने में तथा जीवनान्त तक ढोलक बजाते रहने से लुट्टनसिंह ने जिजीविषा का परिचय दिया।