पहलवान लुट्टन सिंह ने ढोलक की आवाज से प्रेरित होकर चाँद सिंह नामक पहलवान को हरा दिया था। राजा ने उसकी वीरता से प्रभावित होकर अपने दरबार में रख लिया। पहलवान के दो पुत्र थे, उन्हें उसने दंगल-संस्कृति का पूरा ज्ञान दिया। राजा की मृत्यु के पश्चात् पहलवान को अपने गाँव लौटना पड़ा जहाँ वह नौजवानों व चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। पहलवान बड़ा ही साहसी, हिम्मतवाला व धैर्यवान था।
गाँव में फैली बीमारी में भी वह ढोलक की तान से जीवन्तता भर देता था। उसकी ढोलक की तान ही सारी विपत्तियों को मानो चुनौती देती थी तथा भीषण समय में गाँव वालों में संयम व धैर्य प्रदान करती थी। पहलवान ढोलक को ही अपना गुरु मानते थे। जीवन के अन्तिम समय तक वह ढोलक बजाता रहा। पहलवान ने मरने से पहले अपने शिष्यों से कहा था कि वे उसे चिता घर पेट के बल लेटाएँ, क्योंकि वह कभी दंगल में पीठ के बल चित नहीं हुआ था और अग्नि देते समय तक ढोलक बजाते रहें। स्पष्ट होता है कि पहलवान निर्भीक, धैर्यवान, साहसी, हिम्मती तथा कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था।