प्रस्तुत कहानी में व्यवस्थाओं के परिवर्तन के पश्चात् की समस्याओं को स्पष्ट किया गया है। बदलते समय में लोक-कला और कलाकार अप्रासंगिक हो जाते हैं। उनका घटता महत्त्व सांस्कृतिक दृष्टि से चिंताजनक है। प्रस्तुत कहानी में राजा साहब की जगह नए राजकुमार का आकर जम जाना सिर्फ व्यक्तिगत सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि जमीनी पुरानी व्यवस्था के पूरी तरह उलट जाने और उस पर सभ्यता के नाम पर एकदम नयी व्यवस्था के आरोपित हो जाने का प्रतीक है।
यह 'भारत' पर 'इंडिया' के छा जाने की समस्या है जो लुट्टन पहलवान को लोक कलाकार के आसन से उठाकर पेट भरने के लिए हाय-तौबा करने वाली कठोर भूमि पर पटक देती है। मनुष्यता की साधना और जीवन-सौन्दर्य के लिए लोक कलाओं को प्रासंगिक बनाये रखने हेतु सबकी क्या भूमिका है ऐसे कई प्रश्नों को व्यक्त करना इस कहानी का उद्देश्य है।