धूप, वर्षा, आँधी, लू आदि के रूप में काल बाह्य-परिवर्तन लाता है। इससे कमजोर फूल-पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं। लेकिन जो काल की मार से बचने का साहस दिखाता है, विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहता है अथवा अपने व्यवहार में समयानुकूल परिवर्तन लाता है, वह दीर्घजीवी बन जाता है। परन्तु यदि कोई अपने व्यवहार में परिवर्तन एवं गतिशीलता नहीं लाता है, बदलती हुई स्थितियों के अनुरूप स्वयं को नहीं ढाल पाता है, वह परिस्थितियों से घिर कर नष्ट हो जाता है। शिरीष का फूल काल का सामना कर वायुमण्डल से जीवन-रस ग्रहण कर दीर्घजीवी बना रहता है। उसी प्रकार गाँधीजी ने भी अपने परिवेश से रस ग्रहण किया, तो वे विपरीत स्थितियों में भी विजयी रहे।