(क) मनुष्य या इस समस्त जगत् में प्रखर जीवनी शक्ति और सर्वव्यापक काल रूपी अग्नि में निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। कुछ लोग स्वयं मृत्यु से बचना चाहते हुए भी कुछ नहीं करते हैं और सोचते हैं कि वे काल की नजर से बच जायेंगे। परन्तु ऐसे लोग मूर्ख हैं। इसलिए यदि यमराज या काल की मार से बचना है तो हिलते-डुलते रहो, स्वयं को बदलते रहो, पीछे हटने की बजाय आगे लक्ष्य की ओर बढ़ो, अर्थात् संघर्षशील बनो और जीवनी शक्ति को उचित गति प्रदान करो। एक ही स्थान पर जमना या गतिशील न होना तो मौत को निमन्त्रण देना है।
(ख) लेखक बताता है कि कवि-कर्म कोई सहज-साधारण कर्म नहीं है। इसमें कवि को हानि-लाभ, राग-द्वेष, यश-अपयश आदि की चिन्ता न करके अनासक्त रहना पड़ता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह पाता है, उन्मुक्त स्वभाव का अवधूत जैसा नहीं बन सकता है और कवि-कर्म के प्रभाव, हानि-लाभ, अर्थ-प्राप्ति आदि के चक्कर में पड़ा रहता है, वह कवि-कर्म का सही निर्वाह नहीं कर पाता है और श्रेष्ठ कवि नहीं बन सकता है। इसलिए श्रेष्ठ कवि बनने के लिए अनासक्त और फक्कड़ बनना जरूरी है, मस्त स्वभाव का होना आवश्यक है।
(ग) कोई फल या पेड़ अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता है, वह तो अन्य की ओर संकेत करने वाला होता है। अर्थात् वृक्ष या फल बताता है कि उसको उगाने वाला, बनाने वाला कोई और है, उसे जानो। वह अन्य ही इस सृष्टि का निर्माता एवं नियन्ता है, उसे जानने-पाने का प्रयास करो, वही चरम सत्य है।