हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था। इस कारण बचपन में उन्हें विविध वनस्पतियों को देखने का अवसर मिला। फिर वे शान्तिनिकेतन में घने कुंजों के मध्य काफी समय तक रहे। वहाँ पर उन्होंने पलाश, अमलतास, कनेर, मौलसिरी आदि वनस्पतियों के पत्तों-पुष्पों को विकसित होते या झड़ते हुए देखा। इन्हीं कारणों से तथा सहृदय साहित्यकार होने से प्रकृति के विविध उपादानों और वनस्पतियों के प्रति उनकी विशेष रुचि रही। आज के साहित्यकारों को न तो ऐसा परिवेश देखने को मिलता है और न उसकी ऐसी रुचि रहती है। इस कारण आज के साहित्यकार प्रकृति-पर्यवेक्षण में कमजोर हैं। परन्तु प्रकृति के प्रति मेरा दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है और मैं प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर आनन्दमग्न होता हूँ।