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आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व का वर्णन कीजिए।

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इसके अन्तर्गत DNA का कृत्रिम संश्लेषण, DNA की मरम्मत DNA खण्डों को जोड़ना, इच्छित जीन को स्थापित करना, DNA के कुछ न्यूक्लियोटाइड्स को पृथक करके बदलना आदि क्रियाएँ आती हैं। इस कारण इसे पुनः संयोजी DNA प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA technology) भी कहा जाता है।

अनुसन्धान कार्य के लिए तथा अनेक व्यावसायिक उत्पादनों के लिए भी आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग किया जा रहा रहा है। मानव जीन्स की खोज, रोगों के कारणों की खोज भी आनुवंशिक इजीनियरिंग की सहायता से की गई है। इसके द्वारा रोगों के उपचार में भी सहायता मिल रही है।

आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व (Importance of Genetic Engineering)

आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है-

1. आनुवंशिक रोगों का पता लगाना (Diagnosing genetic diseases or disorders) एम्निओसेन्टेसिस (Amniocentesis) तकनीक द्वारा अनेक आनुवंशिक रोगों का गर्भ में ही पता लगाया जाता था किन्तु डी.एन.ए. पुनर्सयोजन तकनीक द्वारा क्लोनकृत डी.एन.ए. क्रम (Cloned DNA sequence) के उपलब्ध होने से गर्भस्थ शिशु के सम्पूर्ण जीनोटाइप का निरीक्षण किया जा सकता है। इस विधि द्वारा विलोपन, प्रतिलोपन (Inversion) बिन्दु उत्परिवर्तन आदि सभी का पता लगाया जा सकता है। पश्चिमी देशों में इस विधि का प्रयोग गर्भस्थ शिशुओं में दात्त कोशिका आरक्तता, थैलेसीमिया, फिनाईल किटोन्यूरिया आदि रोगों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है।

2. व्यक्तिगत जीन्स की पहचान (Identification of individual gene) व्यक्तिगत जीन्स की पहचान आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा की गई और इस माध्यम से अनेक रोगों के जीन्स की खोज की गई है।

3. आनुवंशिक रोगों का उपचार (Treatment of hereditary diseases) सर्वप्रथम आनुवंशिक रोगों के उपचार के लिए प्रयोगशाला के जन्तुओं में मानव रोग के जीन को प्रविष्ट कराया जाता है। फिर क्लोनिंग की सहायता से ऐसे जन्तुओं की संख्या बढ़ाई जाती है। इसके बाद इन जन्तुओं पर इन रोगों के उपचार के प्रयोग किए जाते हैं।

4. व्यक्तिगत जीन्स को पृथक् करना (Isolation of individual genes)- सन् 1970 व 1980 के बीच जीन्स को पृथक् करने की तकनीक विकसित की गई ।

कुछ जीन्स इस काल में पृथक किए गये जो निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं-

  • राइबोसोमल आर.एन.ए के जीन्स,
  • विशिष्ट प्रोटीन बनाने वाले जीन्स,
  • नियन्त्रण क्रिया वाले जीन्स जैसे—रेगुलेटरी जीन (Regulatory gene), प्रोमोटर जीन (Promoter gene) आदि। पहली बार सन् 1965 में जीनोंपस (Xenopus) के राइबोसोमल जीन्स को पृथक् किया गया था।

इस प्रकार चूजों में ओवलब्यूमिन (Ovalbumin) के जीन; चूहे में ग्लोबिन तथा इम्यूनोग्लोबिन जीन, अनाजों व लेग्यूम्स में प्रोटीन संग्रह के जीन्स, बाजरे में ऐमाइलेज के जीन्स आदि को पृथक् किया जा चुका है।

5. मानव जीन्स की मैपिंग (Mapping of human genes)-डी.एन.ए. पुनर्संयोजन तकनीक द्वारा लगभग 1,00,000 से अधिक मानव जीन्स की गुणसूत्र पर स्थिति का निर्धारण किया जा चुका है।

न्यूक्लियोटाइड क्रम में प्राकृतिक रूप से विभिन्नताएँ (Random variations in uncleotide Sequence) पायी जाती हैं। डी.एन.ए अणु की विभिन्नताओं को रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (Restriction fragment length polymorphism या RFLP ) कहते हैं। ऐसे हजारों रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (RFLP) मानव जीनोम में खोजे जा चुके हैं। इनका विभिन्न व्यक्तियों में अध्ययन किया जा सकता है। तथा इनको वंशागति सामान्य मेण्डेलियन वंशागति (Mendelian inheritance) की भाँति होती है।

6. डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग (DNA finger printing)-डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग के लिए रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (RFLP) का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता हैं। प्रत्येक व्यक्ति के गुणसूत्रों में उसकी विशिष्ट RFLP होती है जिसके द्वारा उस व्यक्ति को रुधिर की एक बूंद, एक रोम या त्वचा के कुछ भाग द्वारा ही पहचाना जा सकता है।

7. व्यावसायिक उत्पाद (Commercial products)आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक से तैयार उत्पाद आज बाजार में उपलब्ध हैं।

  • इस तकनीक से निर्मित बाजार में उपलब्ध पहला उत्पाद था-टमाटर। आज जो टमाटर बाजार में उपलब्ध है, उसे फ्लेवर सेवर टमाटर (Flavor saver tomato) कहते हैं। यह टमाटर बिना फ्रिज के भी बहुत दिनों तक खराब नहीं होता है।
  • मानव इन्सुलिन, मानव वृद्धि हॉर्मोन (Human growth hormone), मानव इण्टरफेरॉन (Interferon) का उत्पादन भी किया जा रहा है।
  • इस तकनीक द्वारा विभिन्न रोगों के टीकों का भी उत्पादन किया जा रहा है। एण्टीरैबीज टीके, हेपैटाइटिस-बी आदि इसी तकनीक से तैयार किए गए हैं।
  • जीवाणुओं से कीट प्रतिरोधक जीन निकाल कर पौधों में प्रविष्ट कराया जा रहा है। इससे व्यापारिक महत्त्व के पौधे को कीटों के आक्रमण से बचाया जा सकेगा।
  • इसी प्रकार विषाणुरोधी तथा जीवाणुरोधी पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं। आज प्रत्येक क्षेत्र में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा रहा है।

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