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निविड संकुलित जालक में चतुष्फलकीय एवं अष्टफलकीय छिद्र क्या हैं ? इन छिद्रों की त्रिज्या संकुलित धातु परमाणु गोलों की त्रिज्या से किस प्रकार सम्बन्धित है ?

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निविड़ संकुलित संरचनाएँ

ठोसों में अवयवी कण निविड संकुलित होते हैं तथा उनके मध्य न्यूनतम रिक्त स्थान पाया जाता है। इस रिक्त स्थान को रिक्ति या अन्तराकाशी स्थल (voids or interstitial spaces) कहा जाता है।

अगर अवयवी कण कठोर गोले के रूप में उपस्थित हैं तो उनके त्रिविमीय निविड़ संकुलन (Three dimensional closed packing) को निम्न प्रकार व्याख्यायित कर सकते हैं –

(क) एक विमा में निविड़ संकुलन – यहाँ गोलों को एक पंक्ति में एक-दूसरे को स्पर्श करते हुए व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार की व्यवस्था में प्रत्येक गोला दो निकटवर्ती गोलों के सम्पर्क में होता है अर्थात् इस प्रकार की व्यवस्था में गोले की उपसहसंयोजन संख्या दो (2) होती है।

(ख) द्विविमा में निविड संकुलन – यह दो प्रकार से होता है –

(i) वर्ग निविड़ संकुलन – इस प्रकार के निविड संकुलन में कणों की द्वितीय पंक्ति को प्रथम पंक्ति के सम्पर्क | में इस तरह रखा जाता है कि द्वितीय पंक्ति के गोले प्रथम पंक्ति के गोलों के ठीक ऊपर हों तथा दोनों पंक्तियों के गोले क्षैतिज तथा साथ ही ऊध्र्वाधर रूप में सरेखित हों। यहाँ प्रत्येक गोला निकटवर्ती चार गोलों के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार इसकी उप-सहसंयोजन संख्या चार (4) होती है। इसे वर्ग निविड़ संकुलन कहा जाता है या इसे AAAA प्रकार की व्यवस्था भी कहते हैं।

(ii) षट्कोणीय निविड़ संकुलन – इस प्रकार के निविड संकुलन में कणों की द्वितीय पंक्ति को प्रथम पंक्ति के सम्पर्क में इस तरह रखा जाता है कि द्वितीय पंक्ति के गोले प्रथम पंक्ति के गोलों के अवनमनों (depressions or grooves) में ठीक प्रकार से आ जायें । इस व्यवस्था में मुक्त स्थान कम होता है और | इस प्रकार का संकलन, वर्ग निविड़ संकलन से अधिक दक्ष है। यहाँ प्रत्येक गोला निकटवर्ती छः गोलों के सम्पर्क में रहता है। अतः द्विविम षट्कोणीय निविड संकुलन की उप-सहसंयोजन संख्या छः (6) होती है। इसे ABAB प्रकार की व्यवस्था भी कहा जाता है। यहाँ तल में कुछ रिक्तियाँ (empty spaces or voids) होती हैं, जिनकी आकृति त्रिकोणीय (triangular) होती है। ये त्रिकोणीय रिक्तियाँ दो प्रकार की अर्थात् शीर्ष ऊर्ध्वमुखी (एक पंक्ति में) तथा शीर्ष अधोमुखी (दूसरी पंक्ति में) होती हैं।

(ग) त्रिविमा में निविड़ संकुलन – त्रिविमीय संरचनाएँ द्विविमीय परतों को एक-दूसरे के ऊपर रखने से प्राप्त की जा सकती हैं। ये निम्न प्रकार की होती हैं –

(i) द्विविमा वर्ग निविड़ संकुलित परतों से त्रिविम निविड़ संकुलन – यहाँ द्विविम वर्ग निविड़ संकुलित परतों को एक के ऊपर एक इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि गोले एक-दूसरे के ठीक ऊपर आते हैं और सभी परतों के गोले पूर्णतया क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर दोनों ही रूपों में एक सीध में होते हैं। इस प्रकार जनित होने वाला जालक सामान्य घनीय जालक और उसकी एकक कोष्ठिका आद्य-घनीय एकक कोष्ठिका होती है।

(ii) द्विविमा षट्कोणीय निविड संकुलित परतों से त्रिविम निविड संकलन – इस व्यवस्था में त्रिविमीय निविड़ संकलन निम्न प्रकार से किया जाता है –

(अ) द्वितीय परत को प्रथम परत के ऊपर रखना – इस प्रकार की व्यवस्था में द्वितीय परत के गोले प्रथम परत के अवनमनों में व्यवस्थित होते हैं। चूंकि दोनों परतों के गोले विभिन्न प्रकार से सरेखित हैं इसलिए प्रथम परत को A परत व द्वितीय परत को B परत कहते हैं। यहाँ इस प्रकार की व्यवस्था में चतुष्फलकीय रिक्तियाँ बनती हैं, साथ-ही-साथ अष्टफलकीय रिक्तियाँ भी बनती हैं।

माना कि निविड़ संकुलित गोलों की संख्या = N

तब, जनित अष्ट्रफलकीय रिक्तियों की संख्या = N

जनित चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या = 2N

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