विद्युतीय गुण
चालकता के आधार पर ठोसों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(i) चालक
(ii) रोधक या विद्युतरोधी
(iii) अर्द्धचालक
(i) चालक – वे ठोस जिनमें से विद्युत् धारा की । अधिक मात्रा प्रवाहित होती है, चालक कहलाते हैं। इनकी चालकता की परास 104 से 107 ohm-1 m-1 के मध्य होती है। चालक दो प्रकार के होते हैं –
- (अ) धात्विक चालक (Metallic Conductors)
- (ब) विद्युत् अपघट्य चालक (Electrolytic Conductors)
धात्विक चालकों में विद्युत् चालकता इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता के कारण होती है। धातु ठोस एवं गलित दोनों अवस्थाओं में विद्युत् का चालन करती है। धातुओं की चालकता प्रति परमाणु संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है। ताप बढ़ाने पर चालकों की चालकता कम हो जाती है। धातु से जब विद्युत् धारा का प्रवाह होता है तो उसमें कोई भी रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है।
वहीं दूसरी ओर विद्युत् अपघट्य चालक ठोस अवस्था में बहुत ही । कम मात्रा में विद्युत् का चालन करते हैं वह भी त्रुटि के कारण। विद्युत् अपघट्य गलित अवस्था (Fused state) में तथा अपने विलयन में विद्युत् का चालन करते हैं। विद्युत् का चालन आयनों की गतिशीलता के कारण होता है।
(ii) रोधक – वे ठोस जो विद्युत् धारा प्रवाहित नहीं कर सकते, रोधक कहलाते हैं। इनकी चालकता बहुत कम 10-20 से 10-10 ohm-m- के परास के मध्य होती है। उदाहरणार्थ सल्फर, फॉस्फोरस, लकड़ी, प्लास्टिक, रबर आदि।
(iii) अर्द्धचालक – वे ठोस जिनकी चालकता चालकों एवं रोधक के मध्य की होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। इनकी चालकता 10-6 से 104 ohm-1 m-1 के परास के मध्य की होती है। इनकी चालकता अशुद्धि तथा जालक त्रुटियों के कारण होती है तथा ताप के साथ बढ़ती है।