लक्ष्मी उड़ीसा के गाँव की घरेलू स्त्री है, कर्मठ है। पति लक्ष्मण कोलकाता में काम करते हैं और जो कुछ भेजते हैं उससे चार बच्चों का पालन-पोषण नहीं होता तो तहसीलदार साहब के यहाँ छिटपुट काम कर खाना दाना करती है। वह पति परायणा है। पति के परदेशी होने का उसे दुःख है, फिर भी अच्छे दिन के इंतजार में जी रही है। लक्ष्मी को आकाश का जाम है। देखते ही चर्चा होने एवं छूटने का अनुमान कर लेती है। यह सामाजिक भी है। जव बाद का खतरा आता है तो अपने बेटे को खुशी-खुशी पाँच की रक्षा करने के लिए भेज देती है और लड़कों का उत्साह भी बढ़ाती है। लक्ष्मी ददशी और चतुर है। बाद की संभावना से बचने के लिए बोर में चिवड़ा भर कर रख लेती है, गाय-चछड़े का पगहा खाल देती और बकरियों को सखुला छोड़ देती है। लक्ष्मी ममतामयी है। जब बाद माती है तो अपने बच्चों को लेकर सुरक्षित स्थान को चल पड़ती है। बड़े बेटे के लिए पीछे मुड़ मुड़ कर देखती हैं, उसके लिए उसका जी कचीटता है, और चाद में जय उसके गांद का बच्चा यह जाता है तो चीखती-चिल्लाती है। किन्तु एक दूसरे नन्हें बच्चे को देखकर स्नेहवश उसके मुँह में अपना स्तन लगा देती है, उससे यह भी सूप नहीं है कि वह बच्चा इस संसार में नहीं है।
इस प्रकार, लक्ष्मी कर्मठ, कुशल, पति परायणा, दायित्वबोध समझने वाली स्त्री और ममतामयी माँ है।