सीता की स्थिति बच्चों के उस खेल से मिलती-जुलती थी जिसमें बच्च सरावगियों (जैन धर्मावलंचियों) के 'पाटे' पर 'माईमाई रोटी दे' वाला खेल खेलते। बच्चे में कोई एक भिखारिन बनकर बारी-बारी से दूसरों के पास जाकर एक ही बात कहता-'माई-माई रोटी दे। उस बच्चे को (भिखारिन को) एक ही उत्तर मिलता- 'यह पर छोड़, दूसरे घर जा'। माँ सोचती है- में भी तो इस भिखारिन की तरह ही हूँ। महीना पूरा होते ही दूसरे बेटे के घर जाती हूँ। और, यह सिलसिला लगातार पाँच वर्षों से चल रहा है। महीना पूरा होते ही मुझे सुनाई पड़ता है- 'यह घर छोड़, दूसरे घर जा'।