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निम्नांकित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दें: 

भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को महत्व नहीं दिया। उस दृष्टि में मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उनको प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत निकृष्ट आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी इनको महत्व नहीं दिया, इन्हें सदा संयम के बन्धन में बाँध कर रखने का प्रयत्न किया है। परन्तु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। हुआ यह कि इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए अनेक कायदे कानून बनाये गये हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु बनाने के लक्ष्य से प्रेरित है। अपने आप में यह लक्ष्य बहुत ही उत्तम है, परन्तु जिन लोगों को इन कार्यों में लगना है उनका मन हमेशा पवित्र नहीं होता। प्रायः ही वे लक्ष्य भूल जाते हैं और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। व्यक्ति-चित्त हमेशा आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता।

(i) भारतवर्ष में क्या चरम और परम है?

(ii) कौन-सा आचरण निकृष्ट है?

(iii) किन-किन चीजों की उपेक्षा नहीं की जा सकती?

(iv) भारतवर्ष में अनेक कायदे कानून क्यों बनाए गए हैं?

(v) किन लोगों का मन हमेशा पवित्र नहीं होता? 

(vi) प्रस्तुत गद्यांश का एक उचित शीर्षक दें।

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(i) भारत में मनुष्य के भीतर ही महान आंतरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। 

(ii) मनुष्य में लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकारों का विद्यमान रहना स्वाभाविक है, किन्तु उन विकारों को प्रधान शक्ति मानकर अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना अत्यन्त निकृष्ट आचरण है। 

(iii) भूखे व्यक्ति के लिए भोजन तथा बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। जो व्यक्ति रास्ता भटक गया है, उसे ठीक रास्ते पर लाने के समुचित उपायों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। 

(iv) भारतवर्ष के करोड़ों गरीबों को दरिद्रता तथा शोषण से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन को खुशहाल बनाने के लिए अनेक कायदे कानून बनाए गए हैं

(v) जिन व्यक्तियों को दरिद्रजनों की स्थिति में सुधार लाने तथा देश के विकास का कार्य करना है, उनका मन हमेशा पवित्र नहीं होता तथा वे अपनी ही सुख-सुविधाओं पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। 

(vi) "महान भारतीय परंपरा" अथवा "भारतीय परंपरा के गौरवशाली तत्व।"

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