विद्यार्थी जीवन
परिचय : एक समय आता है जब बालक या युवक किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता है, वह जीवन ही विद्यार्थी जीवन है। कमाई की चिंता से मुक्त अध्ययन का समय ही विद्यार्थी जीवन है। भारत की प्राचीन विद्या-विधि में पच्चीस वर्ष की आयु तक विद्यार्थी घर से दूर आश्रमों में रह कर विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था किन्तु देश की परिस्थिति परिवर्तन से यह प्रथा गायब हो गई इसका स्थान विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने ले लिया। इन तीनों संस्थाओं में जब तक बालक या युवक पढ़ते हैं, वह विद्यार्थी कहलाते हैं।
विद्यालय में प्रवेश : वह दिन मुझे आज भी याद है जब मेरी माँ पहले दिन मुझे पाठशाला ले गई थी। मेरे हाथ में छोटा-सा रंगीन बैग था। इस बैग में नाश्ते का डिब्बा (टिफिन) और पानी की बोतल थी। माँ मुझे शिशु वर्ग में ले गई। शिक्षिका ने प्रेमपूर्वक मुझे अपने वर्ग में बिठा दिया। इस तरह मेरे विद्यार्थी जीवन का श्री गणेश हुआ ।
सहपाठी : अपने सहपाठियों से जुड़ी अनेक यादें मन को आनंदित कर देती हैं। मेरे सभी साथी हँसमुख, शरारती और परिश्रमी थे। उनके साथ मैंने अनेक कार्यों में भाग लिया था । स्कूल में नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है ।
अध्यापकों के प्रति कृतज्ञता : अध्यापक श्री गुप्ता सर तथा श्री मिश्रा सर को मैं बहुत मानता हूँ। गुप्ता जी ने गणित और विज्ञान में मेरी रुचि बढ़ाई। उनके मार्गदर्शन से ही बी. एस. ई. बी. (BSEB) परीक्षा में 100% अंक आया ।
उपसंहार : विद्यार्थियों को अपने विद्यार्थी जीवन काल में अपनी उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल-कूद और व्यायाम पर पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए। हर व्यक्ति को अपने जीवन में सफल होने के लिए उचित शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन किसी भी मनुष्य के जीवन का सबसे अच्छा और यादगार काल होता है।