लघु तथा कुटीर उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये उपभोक्ता वस्तुओं, अधिक लोगों को रोजगार तथा राष्ट्रीय आय का समान वितरण सुनिश्चित करते हैं। यह सामाजिक, आर्थिक प्रगति तथा संतुलित क्षेत्रवाद विकास के लिए एक शक्तिशाली अस्त्र है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन उद्योगों की प्रगति बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर को बढ़ाती है, कौशल में वृद्धि, उद्यमिता में वृद्धि तथा उपयुक्त तकनीक का बेहतर प्रयोग सुनिश्चित करती है। इसको आरंभ करने में बहुत ही कम पूँजी की आवश्यकता होती है।
ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग भारत में हाथों से बनी हुई वस्तुओं को अधिक महत्व देते थे। हाथों से बने महीन धागों के कपड़े, तसर सिल्क, बनारसी तथा बालचेरी साड़ियाँ तथा बुने हुए बार्डर वाली साड़ियाँ और मद्रास की प्रसिद्ध लॉगियों की माँग ब्रिटेन के उच्च वर्गों में अधिक थी। भारत में स्वदेशी आंदोलन के समय खादी वस्त्रों की माँग ने कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया। दो विश्वयुद्धों के बीच कुटीर उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग में वृद्धि हुई और कारखानों के साथ कुटीर उद्योग भी क्षेत्रीय स्थानों पर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।