भारतवर्ष में जीवन के हर क्षेत्र में स्त्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है। पुरुष-प्रधान समाज होने के कारण स्त्रियों को समाज में कोई महत्व नहीं दिया जाता है। सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्र पुरुष के कब्जे में है। महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 54 प्रतिशत है। माता-पिता की मानसिकता बेटों पर अधिक खर्च करने की होती है जिससे लड़कियों की शिक्षा पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है। शैक्षणिक-पिछड़ेपन के कारण लड़कियाँ, ऊँचे वेतन वाले और ऊंचे पदों पर नहीं पहुँच पाती हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ अधिक परिश्रम करती हैं। लेकिन उन्हें उचित मूल्य और उचित सम्मान नहीं मिलता है। रूढ़िवादिता के कारण माता-पिता को केवल लड़के की चाहत होती है जिसके कारण कन्या भ्रूण - हत्या की प्रवृत्ति मौजूद है। कृषि - क्षेत्र में महिलाओं की कुल भागीदारी 40 प्रतिशत है, लेकिन उन्हें पुरुषों के बराबर मजदूरी नहीं दी जाती है। पेशा संबंधित कई क्षेत्र हैं, जिनमें महिलाओं को योग्य नहीं माना जाता है। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन नहीं दिया जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा भी महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है।
फलतः सत्ता में उनकी भागीदारी नाम मात्र की है। पुरुष की भोगवादी प्रवृत्ति के कारण महिलाओं को केवल भोग की वस्तु माना जाता है। घरेलू काम, बच्चे पैदा करना तथा उनका पालन-पोषण महिलाओं का दायित्व माना जाता है। घर के बाहर कार्य करने वाली महिलाओं को बुरे नजरिये से देखा जाता है। पुरुष उसके बाहर काम करने को अपनी तौहीनी या बेईज्जती मानते हैं तथा उन्हें पग-पग (कदम-कदम) पर अपमानित होना पड़ता है। इसके अलावा असामाजिक तत्वों द्वारा अक्सर वे बलात्कार एवं यौन - शोषण का शिकार होती हैं।