शराबबंदी
बिहार सरकार द्वारा लागू शराबबंदी कानून एक साहसिक एवं ऐतिहासिक कदम है। यद्यपि यह कानून अत्यन्त कठोर तथापि शराब जैसी बुरी लत पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून आवश्यक है। शराब या अन्य मादक पदार्थों का लत व्यक्ति को पशु व विक्षिप्त बना देता है। शराब उन्माद पैदा करता है। शराब के नशे में व्यक्ति होश खोकर, निकृष्ट और वर्जित कर्म करता है। शराब पीकर वाहन चलाने से दुर्घटनाएँ होती है। घरेलू हिंसा, बच्चे और महिलाओं पर जुल्म, कदाचा व्याभिचार में वृद्धि बलत्कार बहुत हद तक शराब की देन थी। गरीब मजदूर प्रतिदिन की मज़दूरी का बड़ा अंश मदिरा पान में अपव्यय कर देते हैं।
शराब का लत अमीर-गरीब, युवा वृद्ध, शहरी ग्रामीण सभी लोगों में थी। नेता, पदाधिकारी डॉक्टर, अधिवक्ता, अभियंता, शिक्षक, व्यापारी श्रमिक सभी वर्ग के लोग इस लत से कुप्रभाविन थे। अब बिहार में पूर्ण शराबबंदी के कारण सड़क दुर्घटनाएँ, घरेलू हिंसा, अपहरण, हिंसा, बलल्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित कमी आयी है। यद्यपि शराब के व्यापार-व्यवसाय बंद करने से सरकारी राजस्व में काफी घाटा हुआ है। तथापि इसकी क्षतिपूर्ति अन्य माध्यमों से संभव है।
यद्यपि शराबबंदी कानून के विरुद्ध शराब माफिया बुरी तरह प्रभावित हुए। कुछ लोग नीतीश सरकार की शराबबंदी कानून के कटु आलोचक बन गए। इस कानून के खिलाफ उच्च न्यायालय में गए। लेकिन वे विफल रहे। शराबबंदी का प्रभाव अत्यन्त सकारात्मक है। कुछ ही दिनों के उपरान्त बिहार में एक नयी सामाजिक परिस्थिति उत्पन्न हुई है। देशी और विदेशी दोनों तरह के शराब पर पूर्ण प्रतिबंध अत्यन्त सराहनीय कदम है। आम जनता का पूरा समर्थन है। अपराधी तत्व हतोत्साहित और निराश है। शराब पीकर अपराध करने की घटनाएँ कम हुई है। बैंक डकैतो अपहरण, रोड डकैती, वाहन दुर्घटनाएँ अप्रत्याशित रूप से कम हुई है।
शराबबंदी का सर्वाधिक लाभ महिलाओं को मिला है। अब शराब पीकर कोई मर्द अपनो पत्नी को पीट नहीं रहा है। सरकार ने जितनी कठोरता से शराबबंदी कानून लागू किया है यह अत्यन्त विस्मयकारी है। कभी-कभी मात्र कानून बनाकर छोड़ देती है, पर अमल नहीं करती है। लेकिन बिहार के नीतीश सरकार ने इसपर जितनी कठोर कार्रवाई की है, वह आश्चर्यजनक है। बुराई का दमन कठोरता से ही संभव है। शराब पीनेवाले, शराब रखनेवाले, शराब बेचनेवाले जेल जा रहे हैं। शराब के व्यापार में काफी पैसा है। लोग जान जोखिम में डालकर भी इस धंधा को चालू रखना चाहते हैं।
शराब के धंधा को कठोर कानूनी कार्रवाई से ही दमन संभव है। समझा-बुझाकर शराब का धंधा बंद नहीं कराया जा सकता है। दीवार पर लिखे नारे तो मात्र सज्जनों के लिए है, दुर्जन तोफ पुलिस के डंडे से ही सुनेंगे। आज सम्पूर्ण बिहार में शराब बंद है। लोग चोरी-छिपे शराब पी रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं-कहीं देशी शराब बन रहे हैं। शहरों में पड़ोसी राज्यों से शराब आ रहो है और लोगों को ऊँचे दामों पर मिल रहा है। निश्चय ही सरकार के शराब की उपलब्धता बन्द करने के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहने की जरूरत है।
इस्लाम में शराब को हराम माना गया है। प्रत्येक धर्म में मदिरापान असुरी प्रवृत्ति है। सभ्य समाज के लिए वर्जित है। अतः नीतीश सरकार की शराब नीति अत्यन्त सराहनीय एवं साहसिक कदम है। निश्चय ही शराब बंद कर नीतीश जी ऐतिहासिक पुरुष बन गए हैं। इतिहास इन्हें शराब बंद करने वाला मुख्यमंत्री के रूप में स्मरण करेगा।