परासरण तथा विसरण में अन्तर :
परासरण |
विसरण |
(i) परासरण के लिए अर्द्धपारगम्य झिल्ली की आवश्यकता होती है। |
(i) विसरण के लिए कोई झिल्ली की आवश्यकता नहीं होती है। |
(ii) परासरण में सिर्फ घोलक के अणु घोल से सान्द्र घोल की ओर तब तक जाता है जबतक साम्य की अवस्था प्राप्त नहीं हो जाए । |
(ii) विसरण में हल्की गैसें भारी गैसों की तुलना में अधिक तेजी से विसरित होती है। |
(iii) परासरण में पूरा तंत्र को विद्युतीय सेल माना जा सकता है। |
(iii) विसरण में पूरे तंत्र को विद्युतीय सेल नहीं माना जा सकता है। |
बर्कले एवं हार्टले की विधि- इस विधि में जिस घोल का परिसारक दाब निकालना हो उसे गनमेटल नामक धातुसंकर (alloy) के पात्र में भर लेते हैं। इस पात्र में एक जलरूद्ध पिस्टन P लगा रहता है जिसपर भार रखकर घोल की सतह पर आवश्यक दाब आरोपित किया जा सकता है। एक सरन्ध्र पात्र होता है जिसमें छिद्रों पर कॉपर फेरोसायनाइड की झिल्ली बनी रहती है।
सरन्ध्र पात्र को स्रावित जल से भर देते हैं इसके एक सिरे पर कोशिका नली तथा दूसरे सिरे पर जल पात्र रहता है अब पिस्टन पर इतना भार रखते हैं जिससे कोशिका नली या जल की सतह अपनी आरंभिक ऊँचाई पर आकर स्थिर हो जाये। पिस्टन पर लगाया गया बाहरी दाव घोल का परिसारक दाब होता है।