प्रत्यावर्ती परिपथों में औसत शक्ति (Average Power in A.C. Circuit)
किसी वैद्युत परिपथ में ऊर्जा व्यय की दर को 'शक्ति' (Power) अथवा 'सामर्थ्य' कहते हैं। दिष्ट धारा परिपथ में t सेकण्ड में व्यय ऊर्जा निम्न सूत्र से ज्ञात की जा सकती है-
W = VIt ............(1)
स्पष्ट है कि दिष्ट धारा परिपथ में व्यय ऊर्जा परिपथ के विभवान्तर (V), धारा (I) एवं समय (t) पर निर्भर करती है, लेकिन प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में व्यय ऊर्जा धारा एवं विभवान्तर के परिमाण के साथ - साथ उनके मध्य कलान्तर पर भी निर्भर करती है। प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा एवं विभवान्तर दोनों के मान समय के अनुसार बदलते हैं, अत: व्यय ऊर्जा ज्ञात करने के लिए समी. (1) का प्रयोग सीधे - सीधे नहीं कर सकते। माना प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर Φ है और उन्हें निम्न समीकरणों से व्यक्त किया जाता है-
I = I0 sin ωt ..........(1)
V = V0 sin (ωt + Φ) ..........(2)
यदि किसी क्षण t पर समयान्तराल dt के लिए धारा एवं विभवान्तर को नियत मान ले तो इस समयान्तराल में व्यय ऊर्जा ज्ञात करने के लिए समी. (1) का उपयोग कर सकते हैं। अतः dt समयान्तराल में परिपथ में व्यय ऊर्जा dω = V.I.dt
अतः पूरे चक्र में व्यय ऊर्जा

यदि विभवान्तर को V से व्यक्त करें, तो
P = Vrms.Irms.cosΦ
स्पष्ट है कि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में व्यय सामर्थ्य धारा एवं विभवान्तर के वर्ग माध्य मूल मान पर निर्भर करने के साथ - साथ उनके मध्य कलान्तर (Φ) पर भी निर्भर करती है। कलान्तर पर सामर्थ्य निम्न प्रकार निर्भर करती है-
(i) यदि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल ओमीय प्रतिरोध (Ohmic resistance) है, तो Φ = 0
अतः P = Vrms Irms cos 0°
P = Vrms.Irms
(ii) यदि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल शुद्ध प्रेरकत्व (Pure inductance) है, तो
Φ = + π/2 ∴ cos Φ = 0
अतः P = 0
अर्थात् परिपथ में व्यय शक्ति शून्य होगी।
(iii) यदि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल शुद्ध संधारित्र हैं, तो
Φ = + \(\frac{\pi}{2}\) ∴ cos Φ = 0
अतः P = 0
अर्थात् परिपथ में व्यय सामर्थ्य शून्य होगी।
(iv) LCR परिपथ में cos Φ = \(\frac{R}{Z}\) अतः श्रेणी अनुनादी अवस्था में Φ = 0 अर्थात् धारा और वोल्टता एक ही कला में होते है अत: cos Φ = 1 अर्थात् अनुनादी अवस्था में परिपथ का शक्ति गुणांक अधिकतम होता है। विद्युत पंखे की मोटर में तार के कई फेरों के कारण स्वप्रेरकत्व L का मान बढ़ जाता है एवं शक्ति गुणांक बहुत कम हो जाता है। इस कला कोण को कम करने के लिए ही संधारित्र का उपयोग किया जाता है। यही कारण है कि कई बार घरों में पंखा धीमा चलने पर अक्सर इसका संघारित्र बदला गया है।