ट्रांजिस्टर के इस्तेमाल का सिद्धांत ट्रांजिस्टर एक दोलित्र के रूप में कार्य कर सकता है यदि इसे पर्याप्त प्रवर्धन प्राप्त हो और यदि टैंक परिपथ में होने वाली ऊर्जा की कुल क्षति की भरपाई होती रहे।
दोलनों की व्युत्पत्ति के लिये आवश्यक तत्व (i) एक अनुनादी दोलनी परिपथ जिसमें दोलनों की आवृत्ति मापने के लिये प्रेरकत्व L तथा धारिता C लगा हो, ऐसे परिपथ को टैंक परिपथ कहा जाता है। (ii) एक (d.c.) ऊर्जा का स्रोत। (iii) एक पुनर्निवेश परिपथ (Feedback Circuit)।
चित्र में एक n-p-n ट्रांजिस्टर का दिखाया गया है। इसका दोलनी टैंक परिपथ एक प्रेरकत्व कुंडली L तथा परिवर्ती संधारित्र C से बना होता है। बैटरी B' ऊर्जा का स्रोत है। Feedback circuit में एक प्रेरकत्व कुंडली L' होता है जो कुंडली L से युग्मित रहता है। संधारित्र C परिवर्ती लिया जाता है ताकि दोलनों की आवृत्ति को साजित किया जा सके।
टैंक परिपथ को एक छोटे बैट्री B' से अग्र अभिनति की अवस्था में रखा जाता है।
दोलन की आवृत्ति \(f = \frac 1{2 \pi \sqrt {LC}}\)