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आरेख में पश्चदिशिक बायस में प्रचालन के लिए अभिकल्पित किसी अर्द्धचालक डायोड का V - I अभिलाक्षणिक दर्शाया गया है।

पश्चदिशिक बायस

(a) उपयोग किए गए अर्द्धचालक डायोड को पहचानिए।

(b) इस युक्ति द्वारा दिए गए अभिलाक्षणिक को प्राप्त करने के लिए परिपथ आरेख खींचिए।

(c) इस युक्ति के एक उपयोग की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

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p - n सन्धि डायोड (p - n Junction Diode)

जैसा कि पिछले अनुच्छेद में हम पड़ चुके हैं कि अग्र अभिनति लगाने पर p - n सन्धि तल सुचालक की भाँति और उत्क्रम - अभिनति लगाने पर कुचालक (insulator) की भांति व्यवहार करता है। उत्क्रम

p - n सन्धि डायोड

स्पष्ट है कि सन्धि तल एक डायोड वाल्व की तरह व्यवहार करता है अर्थात् सन्धि तल से धारा तभी बहती है जब p - n सन्धि का p सिरा बैटरी के धनध्रुव से और n सिरा बैटरी के ऋणध्रुव से सम्बद्ध होता है, इसकी विपरीत बोल्टता होने पर सन्धि तल से कोई धारा नहीं बहती है। इस प्रकार "p - n सन्धि के रूप में प्राप्त व्यवस्था को अर्द्धचालक डायोड कहते हैं।" व्यवहार में p व n प्रकार के दो अलग - अलग क्रिस्टल न जोड़कर एक ही अर्द्धचालक पट्टी के एक सिरे पर ग्राही (acceptor) प्रकार की और दूसरे सिरे पर दाता (donor) प्रकार की अशुद्धि मिलाकर p - n सन्धि अर्थात् अर्द्धचालक डायोड बनाते हैं। अर्द्धचालक डायोड की वास्तविक रचना व सैद्धान्तिक रचना में प्रदर्शित की गई है।

अर्द्धचालक डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र (Characteristics Curve of Semi - conductor Diode):

जिस प्रकार डायोड वाल्व में प्लेट धारा के परिवर्तनों को व्यक्त करने पर ऐनोड अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त होते हैं उसी प्रकार अग्रिम एवं उत्क्रम अभिनतियों के संगत धारा के परिवर्तन को प्रदर्शित करने वाला वक्र अर्द्धचालक डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र (characteristics curve) कहलाता है। अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने के लिए परिपर्थों को चित्र में दिखाया गया है।

अर्द्धचालक डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र

अभिलाक्षणिक वक़ का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि-

1. अग्रअभिनति का मान बढ़ाने पर अन धारा का मान बढ़ता है। अग्न अभिनति में आरंभ में धारा उस समय तक बहुत धीरे - धीरे, लगभग नगण्य, बढ़ती है जब तक कि डायोड पर वोल्टता एक निश्चित मान से अधिक न हो जाए। इस अभिलाक्षणिक वोल्टता के बाद डायोड अभिनति वोल्टता में बहुत थोड़ी सी ही वृद्धि करने से डायोड धारा में सार्थक (चरघातांकी) वृद्धि हो जाती है। ये वोल्टता देहली वोल्टता (threshold voltage) या कट - इन वोल्टता (cut - in - voltage) कहलाती है। Ge के लिए ~ 0.2 वोल्ट तथा Si डायोड के लिए ~0.7 वोल्ट है। इसमें धारा मिली ऐम्पियर (mA) की कोटि की होती है। वक्र का यह भाग रैखिक (linear) नहीं है, अत: p - n सन्धि डायोड ओम के नियम का पालन नहीं करता है बल्कि यह चरघातांकी नियम (exponential law) का पालन करता है। स्पष्ट है कि p - n डायोड भी डायोड वाल्व की भाँति अन - ओमीय है।

अग्रअभिनति

p - n डायोड के विभवान्तर में परिवर्तन तथा इसके संगत धारा में हुए परिवर्तन के अनुपात को गतिक प्रतिरोध (dynamic resistance) कहते हैं। यदि विभवान्तर में परिवर्तन ∆V तथा इसके संगत धारा में परिवर्तन ∆i हो तो

p - n डायोड

गतिक प्रतिरोध का मान भिन्न - भिन्न बोल्टताओं पर भिन्न - भिन्न होता है, अत: वक्र के किसी बिन्दु के संगत प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए उस बिन्दु के वक्र पर स्पर्शी (tangent) खींचकर (चित्र (C) में बिन्दु P स्पर्शी के किन्हीं दो बिन्दुओं के सापेक्ष ∆V एवं ∆i के मान ज्ञात करके उक्त सूत्र का प्रयोग करके rd का मान ज्ञात कर लेते हैं।

2. सन्धि डायोड की उत्क्रम अभिनति की दशा में अभिलाक्षणिक वक्र से स्पष्ट है कि उत्क्रम वोल्टेज बढ़ाने पर प्रारम्भ में उत्क्रम धारा लगभग नियत रहती है, परन्तु वोल्टेज बढ़ाते जाने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि उत्क्रम धारा अचानक बढ़ जाती है। इस स्थिति को 'ऐवलांशी - भंजन' (Avalanche Breakdown) कहते हैं और वोल्टेज की इस सीमा को जेनर - वोल्टेज (Zener - voltage) या भंजक कोल्टता (breakdown voltage) कहते हैं। यह प्रक्रिया संचयी होती है। इस दशा में सन्धि के निकट सह - संयोजक बन्ध टूट जाते हैं जिससे इलेक्ट्रॉन - होल युग्म (electron hole pairs) अधिक संख्या में मुक्त हो जाते है और उत्क्रम धारा को बढ़ा देते हैं। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सन्धि डायोड अन अभिनत अवस्था में धारा को एक दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत कम प्रतिरोध तथा उत्क्रम अभिनत अवस्था में धारा को विपरीत दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत अधिक प्रतिरोध लगाता है, अत: इसका उपयोग डायोड वाल्ब की तरह दिष्टकारी (rectifier) के रूप में किया जा सकता है।

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