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दिष्टकारी क्या है? p-n संधि डायोड को (i) अग्र बायस अभिलक्षण (ii) पश्च
बायस अभिलक्षण में कैसे प्रयोग किया जाता है? p-n संधि डायोड के धारा-विभव
अभिलक्षण को ग्राफ पर दर्शाइए।

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दिष्टकारी (Rectifier): वैसी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था जो प्रत्यावर्ती धारा शक्ति को दिष्ट धारा शक्ति में बदलती है, उसे दिष्टकारी कहते हैं।

(i) अग्र वायस या आम अभिनति (Forward Biased)- p-n जंक्शन में p तथा n प्रकार के क्रिस्टलों को बैटरी से जोड़ने की यह विधि जिसमें p-क्रिस्टल बैटरी के धन ध्रुव तथा 11-क्रिस्टल बैटरी के ऋण ध्रुव से जोड़ा जाता है, अग्र अभिनति (forward bias) कहलाती है।

यह व्यवस्था चित्र में प्रदर्शित की गयी है।

अग्र अभिनति

अग्र अभिनति की स्थिति में अर्द्ध-चालक सन्धि डायोड में क्षेत्र से n क्षेत्र की ओर दिष्ट एक बाह्य विद्युत क्षेत्र E स्थापित हो जाता है, जो इसके आन्तरिक क्षेत्र Ei से कहीं अधिक प्रबल

होता है। अतः यह तुरन्त ही आन्तरिक क्षेत्र Ei को उदासीन कर देता है। अब इस दशा में कोटर p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर विद्युत क्षेत्र की दिशा में गति करने लगते हैं। इलेक्ट्रॉन p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत गति करने लगते हैं। n-क्षेत्र में कोटर, इलेक्ट्रॉनों से संयोग करके विलुप्त हो जाते हैं, परन्तु इलेक्ट्रॉन बैटरी के ऋण इलेक्ट्रोड से बराबर आते रहते  

हैं। इसी प्रकार p-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन, कोटरों से संयोग करते हैं और विलुप्त हो जाते हैं। -क्षेत्र में कोटरों की कमी होने पर p-टर्मिनल के समीप सहसंयोजी बन्ध टूटते हैं, तथा इनके इलेक्ट्रॉन निकलकर बैटरी के धन-इलेक्ट्रोड की ओर चलते हैं, जिससे p-क्षेत्र में कोटरों की कमी पूरी हो जाती है। इस प्रकार एक विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। यही सन्धि की अग्र अभिनति (forward bias) की अवस्था कहलाती है। वोल्टेज को बढ़ाने पर धारा शीघ्रता से बढ़ती है।

सन्धि डायोड के लिये इस पर आरोपित विभवान्तर (V) तथा इसमें प्रवाहित धारा (i) के बीच खींचा गया वक्र इसका अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। अग्र अभिनति की स्थिति में i का V के साथ शीघ्रता से बढ़ना चित्र में प्रदर्शित किया गया है।

(ii) पश्च वायस या उत्क्रम अभिनति (Reverse Biased)- 'p-n जंक्शन में p तथा n प्रकार के क्रिस्टल को बैटरी से जोड़ने की वह विधि जिसमें p क्रिस्टल बैटरी के ऋण ध्रुव से तथा n क्रिस्टल बैटरी के धन ध्रुव से जोड़ा जाता है, पश्चवायस या उत्क्रम अभिनति कहलाती है।' यह व्यवस्था चित्र में प्रदर्शित की गई है। इस स्थिति में बाह्य विद्युत क्षेत्र E, n से p की ओर दिष्ट होता है। इस प्रकार इसकी दिशा वही होती है जो आन्तरिक विद्युत क्षेत्र Ei की है। अतः अब यह आन्तरिक विद्युत क्षेत्र की सहायता करता है। इस प्रकार p-n संधि की उत्क्रम अभिनति में अवक्षय पर्त की चौड़ाई बढ़ जाती है। इस दिशा में p-क्षेत्र में कोटर बैटरी के ऋणाग्र की ओर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन बैटरी के धनाग्र की ओर आकर्षित होने के कारण p-n संधि से दूर जाने लगते हैं तथा कुछ ही क्षण में इनकी गति रूक जाती है तथा धारा का प्रवाह लगभग बिल्कुल बन्द हो जाता है। यही सन्धि की उत्क्रम अभिनति (reversed biased) कहलाती है।

उत्क्रम अभिनति

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