हैलोऐल्केनों को ऐल्कोहॉल से कई विधियों द्वारा बनाया जा सकता है। ये सामान्यतः प्रयोगशाला विधियाँ होती हैं जिन्हें निम्न प्रकार वर्णित कर सकते हैं
(i) हैलोजन अम्लों के द्वारा (By Halogen Acids): ऐल्कोहॉल को हैलोजन अम्लों के द्वारा आसानी से हैलोऐल्केन में परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया की सामान्य अभिक्रिया को निम्न प्रकार लिख सकते हैं
(a) क्लोरोऐल्केन (Chloroalkanes): ऐल्कोहॉल की क्रिया जब ल्यूकास अभिकर्मक (Lucas reagent) अर्थात् निर्जल ZnCl2 तथा सान्द्र HCl के साथ करायी जाती है तो क्लोरोऐल्केन प्राप्त होता है। यह अभिक्रिया ग्रूव प्रक्रम (Groove's process) कहलाती है।
(b) ब्रोमोऐल्केन (Bromoalkanes): ऐल्कोहॉल की अभिक्रिया KBr या NaBr तथा सान्द्र H2SO4 के साथ कराने पर अभिक्रिया के दौरान HBr का निर्माण होता है, जो ऐल्कोहॉल के साथ अभिक्रिया करके ब्रोमोऐल्केन बनाता है।
- NaBr + H2SO4 → NaHSO4 + HBr
- C2H5OH + HBr → CH5Br + H2O
ऐल्किल ब्रोमाइड का विरचन ऐल्कोहॉल को 48% HBr के साथ उबालकर भी किया जा सकता है।
(c) आयोडोऐल्केन (Iodoalkanes): इसके विरचन के लिए ऐल्कोहॉल को KI तथा 95% H3PO4 (Phosphoric acid) के साथ गरम किया जाता है।
C2H5OH + HI → C2H5I + H2O
ऐल्कोहॉल को 57% हाइड्रोआयोडिक अम्ल के साथ गर्म करने पर भी आयोडोऐल्केन प्राप्त होता है। इन अभिक्रियाओं के लिए हैलोजन अम्लों की अभिक्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार है।
HI > HBr > HCl
इसका कारण इनकी आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी है। आयोडीन का आकार बड़ा होने के कारण इसकी आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी सबसे कम तथा अभिक्रियाशीलता सबसे अधिक होती है जबकि HCl की आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी अधिक होने के कारण इसकी अभिक्रियाशीलता कम होती है।
इन अभिक्रियाओं के लिए ऐल्कोहॉलों की अभिक्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार है
तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक इसका कारण + I प्रभाव (धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव) है।
(ii) फॉस्फोरस हैलाइडों से अभिक्रिया द्वारा (By the reaction with Phosphorous Halides): फॉस्फोरस हैलाइड (PCl3 तथा PCl5), ऐल्कोहॉलों को ऐल्किल क्लोराइड में परिवर्तित कर देते हैं। ब्रोमाइड तथा आयोडाइड प्राप्त करने के लिए Br2 या I2 की लाल फॉस्फोरस की उपस्थिति में क्रिया कराते हैं, क्योंकि PBr3 तथा PI3 अस्थायी यौगिक हैं।
3ROH + PCl3 → 3RCI + H3PO3
ROH + PCl5 → RCl + POCl3 + HCl
6ROH + 2P + 3X2 → 6RX + 2H3PO3
(जहाँ x = Br, I)
(iii) डार्जेन अभिक्रिया (Darzen's reaction): ऐल्कोहॉलों को पिरीडीन की सूक्ष्म मात्रा की उपस्थिति में थायोनिल क्लोराइड के साथ आसवित करने पर ऐल्किल क्लोराइड बनते हैं। यह अभिक्रिया अन्य की अपेक्षा अधिक उत्तम है, क्योंकि यहाँ शेष दोनों उत्पाद आसानी से निकल सकने वाली गैसें हैं अतः इस अभिक्रिया से शुद्ध ऐल्किल क्लोराइड प्राप्त होता है।