कवि नागार्जुन अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण प्रवासी जीवन व्यतीत करते थे।
अधिकांश समय अपने घर से दूर रहे, जिस कारण वे अपने शिशु के लिए अपरिचित हो गए।
कवि एक अतिथि की तरह बहुत दिनों पश्चात् लौटे हैं।
अपनी इसी स्थिति के कारण वे स्वयं को अन्य, इतर, अतिथि कह रहे हैं।
ये उनके अंतर्मन की पीड़ा और व्यथा को प्रदर्शित कर रहा है।