ग्रामीण बस्तियों की स्थिति तथा विकास को प्रभावित करने में निम्नलिखित पाँच कारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है :
1. जल आपूर्ति: सामान्यतया ग्रामीण बस्तियाँ नदियों, झीलों तथा झरनों आदि के समीप स्थापित होती हैं ताकि वहाँ के निवासियों को पीने, खाना बनाने, वस्त्र धोने तथा कृषि भूमि पर सिंचाई करने के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हो सके। इन्हीं जलस्रोतों से वहाँ के निवासी भोजन के लिए मछलियाँ पकड़ते हैं तथा आवागमन के लिए जल यातायात का प्रयोग करते हैं।
2. भूमि: मानव अपनी बस्ती बसाने के लिए ऐसे स्थल का चयन करता है जहाँ की समीपवर्ती भूमि कृषि कार्य के लिए उपयुक्त तथा उपजाऊ हो। किसी भी क्षेत्र के प्रारम्भिक अधिवास समतल व उपजाऊ कृषि भूमि पर ही स्थापित किए जाते थे। दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के अधिकांश भागों में बस्तियों की स्थिति नदी घाटियों के निम्न भागों, दोआब क्षेत्रों तथा तटवर्ती मैदानी भागों में देखने को मिलती हैं। ऐसा करने से ग्रामीण बस्तियों के निवासी कृषि कार्य कर अपना जीविकोपार्जन आसानी से कर लेते हैं।
3. उच्च भूमि के क्षेत्र: बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बाढ़ से बचने के लिए मानव द्वारा ऐसे उच्च भूमि के क्षेत्रों का चुनाव अपने अधिवासों की स्थापना के लिए किया जाता है जो बाढ़मुक्त होते हैं। नदी बेसिन के निम्नवर्ती भागों में अधिवासों को नदी वेदिकाओं तथा तटबन्धों पर इसलिए स्थापित किया जाता है क्योंकि ये भाग शुष्क बिन्दु होते हैं।
4. गृह निर्माण सामग्री: ऐसे क्षेत्र जहाँ गृह निर्माण में प्रयुक्त सामग्री स्थानीय रूप से व आसानी से उपलब्ध हो जाती है, उन भागों में मानव अपनी बस्तियाँ बसाता है। चीन के लोयस क्षेत्र में कन्दराओं में यहाँ के निवासी अपने मकान बनाते हैं जबकि अफ्रीका के सवाना क्षेत्र में कच्ची ईंटों से तथा ध्रुवीय क्षेत्रों में हिमखण्डों से स्थानीय निवासी अपने मकान बनाते हैं।
5. सुरक्षा: राजनैतिक अस्थिरता, युद्ध तथा पड़ौसी समूहों के उपद्रवी या आतंकी होने की स्थिति में ग्रामीण अपने मकान सुरक्षात्मक दृष्टि से पहाड़ियों एवं द्वीपों पर स्थापित करते हैं। भारत में अधिकांश दुर्ग ऊँचे स्थानों अथवा पहाड़ियों की चोटियों पर स्थापित किये गये हैं।