भारतीय कृषि के प्रकार: आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर कृषि को सिंचित कृषि एवं वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि में विभाजित किया जाता है।
1. सिंचित कृषि - सिंचित कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि पद्धति से है जिसमें कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई साधनों द्वारा जल की आपूर्ति की जाती है। सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर सिंचित कृषि के निम्नलिखित दो वर्ग हैं:
(i) रक्षित सिंचाई कृषि
(ii) उत्पादक सिंचाई कृषि।
(i) रक्षित सिंचाई कृषि:
इस कृषि में वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है। इस प्रकार की सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाने के लिए अधिकतम कृषिगत क्षेत्र को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है।
(ii) उत्पादक सिंचाई कृषि:
उत्पादक सिंचाई कृषि में जल उपलब्ध कराने की मात्रा रक्षित सिंचाई से अधिक होती है। इस कृषि का उद्देश्य फसलों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।
2. वर्षा निर्भर कृषि - वर्षा निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार. पर निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जाता है:
(i) शुष्क भूमि कृषि
(ii) आर्द्र भूमि कृषि।
(i) शुष्क कृषि भूमि:
भारत में शुष्क भूमि कृषि ऐसे प्रदेशों में की जातं. है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम रहती है। इन क्षेत्रों में ऐसी कृषि फसलें उगायी जाती हैं जिनमें शुष्कता सहन करने की क्षमता होती है जैसे - रागी, बाजरा, मूंग, चना, ग्वार तथा ज्वार (चारा फसलें)। इन क्षेत्रों में आर्द्रता संरक्षण तथा वर्षा जल के उपयोग की अनेक विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं।
(ii) आर्द्र भूमि कृषि:
आर्द्र भूमि कृषि के अन्तर्गत वे फसलें उगायी जाती हैं जिन्हें पानी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ती है; जैसे-चावल, जूट तथा गन्ना आदि। इस कृषि में वर्षा ऋतु के अन्तर्गत वर्षा जल की प्राप्ति कृषि फसलों के लिये आवश्यक जल से अधिक होती है। इसी कारण ऐसे क्षेत्रों को कभी-कभी बाढ़ तथा मृदा अपरदन जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।