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भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम का विवरण दीजिए।

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परिचय: भरमौर क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की भरमौर तथा होली नामक दो तहसीलों में विस्तृत मिलता है। इस क्षेत्र में 'गद्दी' नामकः जनजाति के लोग निवास करते हैं। ये लोग ऋतु प्रवास द्वारा पशुपालन तथा सीढ़ीदार खेतों पर पारम्परिक रूप से कृषि कार्य कर अपनी आजीविका चलाते हैं। सन् 2011 में भरमौर क्षेत्र की जनसंख्या 39113 थी, जबकि जन घनत्व 21 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. था। सामाजिक व आर्थिक रूप से हिमाचल प्रदेश के अति पिछड़े क्षेत्रों में सम्मिलित भरमौर क्षेत्र के निवासियों का आर्थिक आधार प्रमुख रूप से कृषि तथा भेड़ व बकरी पालन रहा है।

भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम . इस क्षेत्र में समन्वित विकास का प्रारम्भ 1970 के दशक में उस समय शुरू हुआ जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया। पांचवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भिक वर्ष 1974 में इस क्षेत्र में जनजातीय विकास परियोजना प्रारम्भ की गई तथा हिमाचल प्रदेश की पांच समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाओं (I. T. D. P) में भरमौर क्षेत्र की जनजातीय विकास परियोजना को भी सम्मिलित किया गया।

विकास कार्यक्रम परियोजना का उद्देश्य:

1. भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास परियोजना का प्रमुख उद्देश्य गद्दी जनजाति के जीवन-स्तर में सुधार लाना था।

2. भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों में विकास के स्तर के अंतर को कम करना।

3. परिवहन, संचार, कृषि व इससे सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं का विकास करना।

विकास कार्यक्रम परियोजना की उपलब्धियाँ:

1. भरमौर क्षेत्र में विद्यालयों, जनस्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, सड़कों, संचार तथा विद्युत के रूप में अवसंरचनात्मक विकास हुआ है।

2. होली तथा खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँवों को विकास का सर्वाधिक लाभ मिला है।

3. भरमौर क्षेत्र की साक्षरता दरों में तीव्र वृद्धि, लिंगानुपात में सुधार तथा बाल विवाह में कमी अनुभव की गई है।

4. दालों तथा विभिन्न नकदी फसलों के क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

5. ऋतु प्रवास में संलग्न जनसंख्या में तेजी से कमी आई है। वर्तमान में कुल गद्दी परिवारों का केवल 1/10वाँ भाग ही ऋतु प्रवास करता है।

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