(1) भारत में वैदिककाल का प्रारम्भ 1500 ई. पू. से माना जाता है। वैदिककाल को दो भागों में विभाजित किया जाता है - पूर्व वैदिककाल (1500-1000 ई. पू.) तथा उत्तर वैदिककाल (1000-600 ई. पू.)। पूर्व वैदिककाल पूर्णरूप से ग्रामीण संस्कृति थी। इस समय अर्थव्यवस्था मुख्यतः पशुपालन पर आधारित थी तथा कुछ मात्रा में कृषि उत्पादन भी होता था। इस समय लोहा नामक धातु का पूर्णतया अभाव था।
(2) लगभग 1000 ई. पू. के आस-पास उत्तर वैदिककाल में लोहे का प्रचुर मात्रा में उत्खनन तथा उपयोग आरम्भ हो गया था। लोहे के प्रयोग ने एक क्रान्ति उत्पन्न कर दी। सर्वप्रथम लोहे के औजारों से गंगा दोआब के घने जंगल काटकर कृषियोग्य भूमि बनाई गई। कुदाल तथा कुल्हाड़ी से पेड़ों की गहरी जड़ें भी सुगमता से खुद गयीं, इस प्रकार विस्तृत मात्रा में कृषियोग्य भूमि निर्मित हो गयी तथा लोहे के हल से गहरी जुताई होने लगी। इन सबके परिणामस्वरूप अधिक मात्रा में कृषि पैदावार होने लगी।
(3) अधिक कृषि की पैदावार के रण राज्य को अधिक मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होने लगी। अधिक राजस्व की प्राप्ति के लिए राज्य-प्रशासन ने भी विस्तृत तथा व्यवस्थित कर-प्रणाली विकसित करना आरम्भ कर दिया। इस कर-प्रणाली का ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अन्तर्गत कड़ाई से पालन किया गया जिसके फलस्वरूप समाज में असन्तोष व्याप्त हो गया।
(4) यह असन्तोष अनेक जन आन्दोलनों के रूप में सामने आया जिसमें जैन तथा बौद्ध आन्दोलन प्रमुख हैं। इन सब आन्दोलनों के कारण राज्य के लिए स्थायी सेना रखना और भी अधिक आवश्यक हो गया। स्थायी सेना के कारण राज्य अपने क्षेत्र की सीमाओं को भी विस्तृत करने लगे।
पूर्व वैदिककालीन जनपद अब महाजनपद के रूप में परिवर्तित होने लगे। इस प्रकार कुल सोलह महाजनपदों का उद्भव हुआ। प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय तथा जैन ग्रन्थ 'भगवती सूत्र' से इन सोलह महाजनपदों का विवरण प्राप्त होता है जिनमें मगध सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था।।
(5) मगध के पास वे सभी तत्व थे जिनके माध्यम से एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना होती है। भौगोलिक दृष्टि से सुरक्षित, उपजाऊ कृषि भूमि, खनिज संसाधनों की बहुलता, यातायात के उत्तम साधन, कूटनीति, महत्वाकांक्षी शासक इत्यादि ही वे तत्व थे जिनके माध्यम से मगध एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में उभरा।
(6) लगभग 321 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना की जो एक जनतान्त्रिक तथा लोकप्रिय वंश था। इसके शासनकाल में भारत की सीमाएँ गांधार तक फैल गईं।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार नगरों का विकास होता है अथवा नगरों के विकास में किन-किन तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे एक साम्राज्य की स्थापना होती है तथा कैसे उसका पतन होता है।