इतिहासकार एवं अभिलेखशास्त्री अशोक के अभिलेखों से निम्न प्रकार के साक्ष्य प्राप्त करते हैं
(1) अभिलेखों का परीक्षण करना - सर्वप्रथम इतिहासकार एवं अभिलेखशास्त्री ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभिलेख का परीक्षण करते हैं; जैसे-अशोक के एक अभिलेख में यह लिखा है कि 'राजन देवानांपिय, पियदस्सी यह कहते हैं' इस अभिलेख में अशोक का नाम नहीं लिखा हुआ है। इसमें अशोक द्वारा ग्रहण की गयी उपाधियों का प्रयोग किया गया है जिनमें देवानांपिय व पियदस्सी आदि प्रमुख हैं, परन्तु अन्य अभिलेखों में अशोक का नाम मिलता है जिसमें उसकी उपाधियों का भी विवरण मिलता है।
इन अभिलेखों का परीक्षण करने के पश्चात् अभिलेखशास्त्रियों व इतिहासकारों ने पहले यह पता लगाया कि उनके विषय, शैली, भाषा, पुरालिपि विज्ञान आदि सभी में समानता दिखाई देती है या नहीं उसके बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि इन अभिलेखों को एक ही शासक ने बनवाया था। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से कहा है कि उससे पूर्व के शासकों ने जनता से सूचनाएँ प्राप्त करने की व्यवस्था नहीं की थी।
इतिहासकारों एवं अभिलेखशास्त्रियों को इस प्रकार के अभिलेखों का अध्ययन करने के पश्चात् यह जानकारी हासिल करनी होती है कि अशोक ने इन अभिलेखों में जो कुछ कहा है वह किस सीमा तक ठीक है। इस प्रकार इतिहासकारों व अभिलेखशास्त्रियों को बार-बार अभिलेखों में लिखे हुए कथनों का परीक्षण करना पड़ता है ताकि यह जानकारी प्राप्त हो सक कि जो कुछ उनमें लिला हुआ है वह सत्य है, सम्भव है अथवा फिर बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है।
(2) कोष्ठक में लिख हुए शब्दों के अर्थ की जानकारी प्राप्त करना - सम्राट अशोक के कुछ अभिलेखों में कुछ शब्द कोष्ठक (ब्रेकेट) में लिखे हुए मिलाने हैं उदाहरण के रूप में, एक अभिलेख में अशोक कहता है कि "मैंने निम्नलिखित (व्यवस्था) की हैंअभिलेखशास्त्री प्राय: वाक्यों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए इन कोष्ठकों (बेकेटों) का प्रयोग करते हैं। ऐसा करते समय अभिलेखशास्त्रियों को बड़ी सावधानी से कार्य करना पड़ता है जिससे कि लेख का मूल अर्थ बदल न जाए।
(3) युद्ध के प्रति मनोवृत्ति में परिवर्तन को दर्शाना - अशोक के एक अभिलेख से कलिंग युद्ध में हुई विनाशलीला के बारे में जानकारी प्राप्त होती है जिसमें अशोक की वेदना प्रकट होती है। साथ ही यह अभिलेख कलिंग-युद्ध के पश्चात् उसकी परिवर्तित मनोवृत्ति को भी दर्शाता है, परन्तु यह अभिलेख उस क्षेत्र से नहीं मिला है जहाँ यह युद्ध हुआ था अर्थात् कलिंग (आधुनिक ओडिशा) से उसकी वेदना के परिलक्षित करने वाला कोई अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ है। इतिहासकारों व अभिलेखशास्त्रियों ने इसका यह अर्थ लगाया है कि सम्भवतः अशोक की नव विजय की वेदना उस क्षेत्र (कलिंग) के लिए इतनी पीड़ादायक थी कि अशोक इस मुद्दे पर कुछ कह न सका।
(4) अन्य परीक्षण करना - इतिहासकारों को और भी परीक्षण करने पड़ते हैं; जैसे-यदि राजा के आदेश यातायात मार्गों के किनारे एवं नगरों के पास प्राकृतिक पत्थरों पर उत्कीर्ण किए गए थे तो क्या वहाँ से गुज़रने वाले लोग उन्हें पढ़ने के लिए उस स्थान पर रुकते थे ? उस काल के अधिकांश लोग शिक्षित नहीं थे। क्या प्राकृत भाषा को भारतीय उपमहाद्वीप के सभी स्थानों के लोग समझते थे? क्या राजा के आदेशों का पालन किया जाता था? इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना भी जटिल है। अब इतिहासकार विभिन्न साक्ष्यों की सहायता से इस जटिल समस्या का समाधान करते हैं।