प्रभावती गुप्त और दंगुन गाँव प्रभावती गुप्त ने अपने अभिलेख में यह कहा है :
प्रभावती ग्राम कुटुम्बिनों (गाँव के गृहस्थ और कृषक), ब्राह्मणों और दंगुन गाँव के अन्य निवासियों को यह आदेश देती है. "आपको ज्ञात हो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को धार्मिक पुण्य प्राप्ति के लिए इस ग्राम को जल अर्पण के साथ आचार्य चनाल स्वामी को दान किया गया है।
आपको इनके सभी आदेशों का पालन करना चाहिए। एक अग्रहार के लिए उपयुक्त निम्नलिखित रियायतों का निर्देश भी देती हूँ। इस गाँव में पुलिस या सैनिक प्रवेश नहीं करेंगे। दौरे पर आने वाले शासकीय अधिकारियों को यह गाँव घास देने और आसन में प्रयुक्त होने वाली जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व से मुक्त है।
साथ ही वे मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकार को कार्यान्वित किये जाने से मुक्त हैं। इस गाँव को खनिज पदार्थ और खदिर वृक्ष के उत्पाद देने से भी छूट है। फूल और दूध देने से भी छूट है। इस गाँव का दान इसके भीतर की सम्पत्ति और बड़े-छोटे सभी करों सहित किया गया है।" इस राज्यादेश को 13वें राज्य वर्ष में लिखा गया है और इसे चक्रदास ने उत्कीर्ण किया है।
1. रानी प्रभावती गुप्त ने किस प्रकार धार्मिक पुण्य प्राप्ति का प्रयास किया?
2. भूमि दान करने के असामान्य पहलू की व्याख्या कीजिए।
3. यह शिलालेख हमें राज्य और जन-सामान्य के बीच सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है? स्पष्ट कीजिए।
4. प्रभावती गुप्त ने अभिलेख द्वारा अपने अधिकार को किस प्रकार प्रदर्शित किया?
5. अभिलेख से हमें ग्रामीण लोगों के बारे में किस प्रकार की जानकारी मिलती है?
6. प्रभावती गुप्त द्वारा जारी किए गए राज्यादेश के महत्व की जाँच कीजिए।
7. इस गाँव में कौन-कौनसी वस्तुएँ पैदा की जाती थीं?