इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहरों की समृद्धि का आधार भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी। इब्न बतूता का यह कथन पूर्णरूपेण सत्य है क्योंकि शहरों की समृद्धि का सीधा सम्बन्ध कृषि अर्थव्यवस्था से होता है। भारतीय भूमि बहुत उपजाऊ और उत्पादक थी। गंगा-यमुना जैसी नदियों के कारण सिंचाई हेतु पानी की पर्याप्त उपलब्धता और मौसम की अनुकूलता के कारण वर्ष में किसान दो-दो फसलें लेते थे।
व्यापार और वाणिज्य के सम्बन्ध में इब्न बतूता ने यहाँ की शिल्पकारी की वस्तुयें तथा सूती कपड़ों, महीन, मलमल, साटन, ज़री आदि के सम्बन्ध में वर्णन किया है कि इनकी अन्य देशों में बहुत माँग थी। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था। इसीलिए निर्यात के द्वारा यहाँ के शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था। निर्यात की वस्तुओं में महीन मलमल विश्व प्रसिद्ध था जिसकी कुछ किस्में इतनी महँगी होती थीं कि उन्हें पहनना सिर्फ राजा-महाराजाओं, अमीरों और सरदारों के बस की ही बात थी।