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यूरोप के लिए एक चेतावनी

बर्नियर चेतावनी देता है कि यदि यूरोपीय शासकों ने मुगल ढाँचे का अनुसरण किया तो उनके राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए, इतनी अच्छी तरह से निर्मित, इतने समृद्ध, इतने सुशिष्ट तथा फलते-फूलते नहीं रह जायेंगे जैसा कि हम उन्हें देखते हैं। दूसरी दृष्टि से हमारे शासक अमीर और शक्तिशाली हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि उनकी और बेहतर और राजसी ढंग से सेवा हो।

वे जल्द ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जाएंगे जैसे कि वे जिनके विषय में मैंने वर्णन किया है। (मुगल शासक) हम उन महान शहरों और नगरों को खराब हवा के कारण न रहने योग्य अवस्था में पायेंगे तथा विनाश की स्थिति में, जिनके जीर्णोद्धार की किसी को चिन्ता नहीं है, व्यक्त टीले और झाड़ियों अथवा घातक दलदल से भरे हुए खेत, जैसा कि पहले ही बताया गया है।

1. बर्नियर सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार करता है ?

2. बर्नियर ने मुगल शासकों को दोषी क्यों ठहराया है?

3. अबुल-फजल की आइन-ए-अकबरी और बर्नियर के विवरण में क्या अन्तर है?

4. गर्व का अन्त होता ही है जब कोई कार्य की उपेक्षा और शक्ति का प्रयोग अन्य पर करता है?' कथन के सन्दर्भ में बर्नियर की चेतावनी को स्पष्ट कीजिए।

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1. बर्नियर ने मुगल शासकों की नीतियों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की भयावह स्थिति का चित्रण किया है। उसके अनुसार मुगल शासकों की नीतियाँ कतई हितकारी नहीं हैं; उनका अनुसरण करने पर उनके राज्य इतने सुशिष्ट और फलते-फूलते नहीं रह जायेंगे तथा वह भी मुगल शासकों की तरह जल्द ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे। परिणाम होगा व्यक्त टीले और झाड़ियों अथवा घातक दलदल से भरे हुए खेत जैसा कि पहले ही बताया गया है।

2. बर्नियर का मत था कि मुगल सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था जो भूमि को अमीरों के बीच बाँटता था। भूमि का यह स्वामित्व अर्थव्यवस्था और समाज के लिए हानिकारक था। बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था।

3. बर्नियर के अनुसार मुगल सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था, वहीं अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में भूमि राजस्व को 'राजत्व का पारिश्रमिक, बताया है जो सम्राट द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले में की गई माँग मालूम होती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान।

4. बर्नियर ने राज्य तथा समाज से सम्बन्धित यूरोप में प्रचलित तत्कालीन विवादों में भाग लेते हुए प्रयास किया कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित उसका विवरण यूरोप में उन व्यक्तियों के लिए चुनौती का कार्य करेगा जो निजी स्वामित्व के गुणों को स्वीकार नहीं करते थे।

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