विजयनगर शहर, जो कि तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा हुआ था, का उत्तरी क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा हुआ है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में वर्णित बाली और सुग्रीव के राज्य की रक्षा करती थीं। ऐसी भी मान्यताएँ हैं कि विरुपाक्ष भगवान, जो शिव का रूप थे और विजयनगर राज्य के संरक्षक थे, से विवाह हेतु स्थानीय मातृदेवी ‘पम्पा देवी' ने पहाड़ियों में तपस्या की थी। आज भी प्रतीकात्मक रूप से प्रतिवर्ष यह विवाह विरुपाक्ष मन्दिर में धूमधाम से आयोजित किया जाता है। धार्मिक क्षेत्र में मन्दिर निर्माण की एक प्राचीन परिपाटी रही है, पल्लव, चालुक्य, होयसल तथा चोलवंशों के राजाओं द्वारा भी इस क्षेत्र में मन्दिरों का निर्माण कराया गया है।
मन्दिर केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि शैक्षिक, सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों के भी केन्द्र थे। धार्मिक आस्था : राजधानी के रूप में विजयनगर का चयन–सम्भवतः विजयनगर को राजधानी के रूप में चयनित करने का कारण यहाँ 'भगवान विरुपाक्ष' और पम्पा देवी के मन्दिरों का स्थित होना रहा हो। विजयनगर के शासक अपने-आपको भगवान विरुपाक्ष का प्रतिनिधि मानकर शासन करने का दावा करते थे। राज्य के सभी राजकीय आदेशों पर 'श्री विरुपाक्ष' शब्द कन्नड़ लिपि में सबसे ऊपर अंकित किया जाता था। शासकों द्वारा 'हिन्दू सूरतराणा' शब्द का प्रयोग देवताओं से अपने गहन सम्बन्धों को दर्शाने हेतु 'श्री विरुपाक्ष' के बाद किया जाता था।
'गोपुरम् और मण्डप'-इस समय तक मन्दिर निर्माण की स्थापत्य कला में कई नए तत्वों का समावेश हुआ। राय गोपुरम् अथवा राजकीय प्रवेश द्वार इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है। राय शब्द का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि इसका निर्माण विजयनगर के राय शासकों द्वारा किया गया। राय गोपुरम् की विशालता इस बात को प्रमाणित करती है कि तत्कालीन विजयनगर के शासक इतने ऊँचे गोपुरम के निर्माण हेतु आवश्यक सामग्री, साधन व तकनीक का प्रबन्ध करने में सक्षम थे। इनके सामने केन्द्रीय देवालयों की मीनारें बहुत छोटी प्रतीत होती थीं। मन्दिर के परिसर में मंडप तथा लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे देवस्थलों के चारों ओर बने हुए थे।
विरुपाक्ष मन्दिर–विरुपाक्ष मन्दिर के निर्माण में कई शताब्दियों का लम्बा समय लगा। सबसे प्राचीन मन्दिर, जो कि नवीं-दसवीं शताब्दी के कालखण्ड में निर्मित था, का विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद व्यापक विस्तार किया गया। राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में मुख्य मन्दिर के सामने मंडप का निर्माण करवाया जिसके स्तम्भों पर अत्यन्त सुन्दर उत्कीर्णन किया गया है। पूर्वी गोपुरम् भी कृष्णदेव राय के शासनकाल में ही निर्मित हुआ। मन्दिर में निर्मित विभिन्न सभागारों को धार्मिक अनुष्ठान के कार्यों में प्रयोग में लाया जाता था।
देवी-देवताओं को झूला झुलाने तथा उनके वैवाहिक उत्सवों का आनन्द मनाने हेतु अन्य सभागारों का प्रयोग किया जाता था। विट्ठल मन्दिर–विट्ठल मन्दिर भी विजयनगर के धार्मिक केन्द्र का दूसरा महत्वपूर्ण मन्दिर है। भगवान विट्ठल को विष्णु का स्वरूप माना जाता है। महाराष्ट्र में भगवान विट्ठल प्रमुख आराध्य देव के रूप में पूजे जाते हैं। कर्नाटक में विट्ठल की पूजा विजयनगर के शासकों द्वारा अलग-अलग प्रदेशों की परम्पराओं को आत्मसात् करने का उदाहरण है। इस मन्दिर के परिसरों की विशेषता रथ की प्रतिकृति के बने मन्दिर हैं। मन्दिर के परिसरों में पत्थर के टुकड़ों से निर्मित गलियाँ हैं; जिनके दोनों ओर बने मंडपों में व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे। कुछ नायकों के द्वारा भी गोपुरमों के निर्माण के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।