1. i. दरबार लगाने से पहले ढोल पीटा जाता था।
ii. अल्लाह का गुणगान किया जाता था।
iii. दरबार में सभी लोगों को सूचना दी जाती थी अर्थात् उपस्थित लोगों को सूचना जारी की जाती थी।
iv. सम्राट का सभी व्यक्तियों द्वारा अभिवादन किया जाता था।
v. विभिन्न विद्वान शासक को अपना आदर प्रस्तुत करते थे।
vi. न्याय अधिकारी अपनी रिपोर्ट सम्राट को सौंपते थे।
vii. शासक सभी कार्यों का अवलोकन करता था तथा उस पर अपने आदेश जारी करता था।
viii. तलवारबाज़ तथा पहलवान अपने-अपने करतब दिखाते थे।
ix. गायक तथा संगीतज्ञ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे।
x. चतुर बाजीगर तथा मजाकिया भी अपना कौशल सम्राट के समक्ष प्रस्तुत करते थे।
2. दरबार में सामाजिक नियंत्रण को व्यवहारित करने के लिए संबोधन, शिष्टाचार तथा बोलने में नियमों को ध्यानपूर्वक निर्धारित किया गया था। यदि कोई शिष्टाचार का उल्लंघन करता था तो उसे दण्डित किया जाता था।
3. महामहिम के पुत्र, पौत्र आदि दरबार की गतिविधियों में भाग लेने के लिए कोर्निश पर अपने स्थान पर खड़े रहते हैं।