1797 ई. में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम कर दी गईं क्योंकि बद्रवान के राजा पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजस्व की एक बड़ी राशि बकाया थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा यह नियम बनाया गया था कि जो जींदार निश्चित समय पर निर्धारित राजस्व राशि जमा नहीं करायेगा उसकी जींदारी नीलाम कर दी जाएगी। इस हेतु नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक खरीददार थे। खरीददारों में सबसे ऊँची बोली लगाने वाले व्यक्ति को भू-सम्पदाएँ तथा जमींदारी बेच दी गयी लेकिन यह खरीदारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में से 95 प्रतिशत लोग राजा के ही एजेंट थे। वैसे राजा की जमीनें अर्थात् भू-सम्पदाएँ खुले रूप से बेच दी गयी थी लेकिन उनकी जमींदारी का नियन्त्रण पूर्व राजाओं के हाथों में ही रहा। राजा शब्द का प्रयोग तत्कालीन बंगाल में शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।