यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही थी लेकिन जर्मीदारों की सत्ता पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक माँग एवं अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए कुछ नयी रणनीति बनाकर जमींदारों ने ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिरोध किया। नई रणनीतियाँ निम्नलिखित र्थी
(i) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण: जींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भाग को अपने परिवार की स्त्रियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी महिलाओं के हिस्से की नीलामी नहीं करती थी। उदाहरण के लिए; बद्रवान के राजा (जींदार) ने अपनी जींदारियों का एक हिस्सा अपनी माता को दे दिया क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियमानुसार स्त्रियों की सम्पत्ति को नहीं छीना जाता था।
(ii) नकली नीलामी: जींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर ईस्ट इंडिया कम्पनी या अंग्रेज अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व माँग का भुगतान नहीं करते थे और रकम जानबूझकर रोक लेते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ती जाती थी। जब भू-सम्पदा का कुछ हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची-ऊँची बोलियाँ लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे। आगे चलकर उन्होंने खरीद की राशि को अदा करने से इंकार कर नीलाम की गई भू-सम्पदा के सौदे को अनिश्चित स्थिति में लटका दिया। एक ही भू-सम्पदा पर ऐसी प्रक्रिया वे कई बार कराते थे जिसके फलस्वरूप कम्पनी के अधिकारी परेशान होकर जींदार को ही नीची कीमत पर भू-सम्पदा नीलाम कर देते थे। इस प्रकार के सौदे बड़े पैमाने पर हुए।
(iii) अन्य तरीके: जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचाने के साथ-साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि ईस्ट इंडिया कम्पनी के किसी अधिकारी की भ-सम्पदा को कोई बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था। कभी-कभी पुराने जर्मीदार के लठियाल नये खरीददार को धमका कर अथवा मारपीट कर भगा देते थे। कभी-कभी पुराने किसान नये जींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।
परिणाम -19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गयी। इसलिए जो जर्मीदार 1790 के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो गये, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को भी कुछ लचीला बना दिया गया जिसके फलस्वरूप गाँवों पर जमींदार की पकड़ और मजबूत हो गयी लेकिन आगे चलकर 1930 के दशक की घोर मंदी की हालत में अन्तत: जींदारों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली।