संथाल-संथाल एक जनजाति है। संथाल 1780 के दशक के आसपास बंगाल में आने लगे थे, जींदार लोग खेती के लिए नयी भूमि तैयार करने एवं कृषि का विस्तार करने के लिए उन्हें भाड़े पर रखते थे। वे एक प्रकार से खानाबदोश जीवन जी रहे थे।
संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में पहुँचना व ब्रिटिश अधिकारियों की भूमिका:
जब ब्रिटिश अधिकारी राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले पहाड़ी लोगों को स्थायी कृषि करने के लिए सहमत नहीं कर पाये तो उनका ध्यान संथाल जनजाति के लोगों पर गया। पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल का प्रयोग करने को तैयार नहीं थे और अब भी उपद्रवी व्यवहार करते थे। इसके विपरीत संथाल आदर्श बाशिंदे दिखाई देते थे क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था। वे भूमि को पूरी क्षमता के साथ जोतते थे। अतः ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में स्थायी खेती करने के लिए सहमत कर लिया और उन्हें वहाँ बसाना प्रारम्भ कर दिया।
1832 ई. के आसपास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो दामिन-ए-कोह कहलाया। इसे संथालों की भूमि घोषित किया गया, इसलिए उन्हें इसी प्रदेश के भीतर रहना था, हल चलाकर खेती करनी थी एवं स्थायी किसान बनना था। संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान-पत्र में यह शर्त थी कि उन्हें दी गयी भूमि के कम से कम दसवें भाग को साफ करके पहले 10 वर्षों के भीतर ही जोतना होगा। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण करके उसका मानचित्र तैयार किया गया। इसमें चारों ओर खम्बे गाढ़कर इसकी परिसीमा निर्धारित की गई। इस प्रकार इसे मैदानी क्षेत्र के स्थायी कृषकों की भूमि एवं पहाड़िया लोगों की भूमि से अलग कर दिया गया।
दामिन-ए-कोह के सीमांकन के पश्चात् संथालों की बस्तियों का विस्तार बड़ी तीव्र गति से हुआ। 1838 ई. में संथालों के गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 ई. में बढ़कर 1473 तक पहुँच गयी। इसी अवधि में संथालों की जनसंख्या 3000 से बढ़कर 82000 से भी अधिक हो गयी। खेती का विस्तार होने से ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल लोग व्यापारिक खेती करने के साथ-साथ व्यापारियों एवं साहूकारों से लेन-देन भी करने लगे।