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कर्ज़ कैसे बढ़ते गए

दक्कन दंगा आयोग को दी गई अपनी याचिका में एक रैयत ने यह स्पष्ट किया कि ऋणों की प्रणाली कैसे काम करती थी :

एक साहूकार अपने कर्जदार को एक बंधपत्र के आधार पर 100 रु. की रकम 3-2 आने प्रतिशत की मासिक दर पर उधार देता है। कर्ज लेने वाला इस रकम को बांड पास होने की तारीख से आठ दिन के भीतर वापस अदा करने का करार करता है। रकम वापस अदा करने के लिए निर्धारित समय के तीन साल बाद साहूकार अपने कर्जदार से मूलधन तथा ब्याज दोनों को मिला कर बनी राशि (मिश्रधन) के लिए एक अन्य बांड उसी ब्याज दर से लिखवा लेता है और उसे संपूर्ण कर्जा चुकाने के लिए 125 दिन की मोहलत दे देता है। तीन साल और 15 दिन बीत जाने पर कर्जदार द्वारा एक तीसरा बांड पास किया जाता... (यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है) 2 वर्ष के अंत में 1,000 रु. की राशि पर उसका कुल व्याज 2,028 रु. 10 आना 3 पैसे हो जाता है।

1. रैयत साहूकारों से ऋण किस उद्देश्य के लिए प्राप्त करते थे?

2. ऋाण की प्रणाली की रैयत ने किस प्रकार व्याख्या की?

3. आप यह कैसे सोचते हैं कि रैयतों द्वारा ऋण लेने का तरीका उनके लिए दुःख लाया?

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1. रैयत राजस्व अदा करने, अपनी जरूरत की चीजों को जुटाने, अपने हल-बैल खरीदने तथा बच्चों की शादियाँ करने के उद्देश्य से साहूकारों से ऋण प्राप्त करते थे।

2. रैयत के अनुसार साहूकार एक बंधपत्र के आधार पर ₹100 की रकम 3.2 आने प्रतिशत की मासिक दर पर उधार देता है। इसमें कर्जदार बांड पास होने की तारीख को आठ दिन के भीतर रकम वापस अदा करने का करार करता है। इस निर्धारित समय के तीन साल बाद साहूकार कर्जदार से मूलधन और ब्याज के साथ बनी राशि (मिश्रधन) के लिए एक अन्य बांड समान व्याज दर पर लिखवाकर कुल रकम वापस अदा करने के लिए 125 दिन का समय देता है। तीन साल और 15 दिन बीतने पर कर्जदार द्वारा एक तीसरा बांड पास किया जाता और यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है।

3. रैयतों द्वारा ऋण लेने का तरीका उनके लिए दुःख लाया, यह इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है

  • साहूकार ऋण चुकाने पर रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे। 
  • वे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। 
  • रैयतों की फसल नीची कीमतों पर लेते थे तथा अंतत: उनकी धन-संपत्ति को ही कब्जा लेते थे।

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